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गुरुवार, 25 अगस्त 2011

हर बार ..... इस बार





हर बार
वादे पर वादे करते हो
फिर वादो से मुकरते हो
वक्त वक्त पर तुमने
जनता को ही
निशाना बनाया है

हर बार
वोट पर वोट मांगते हो
फिर हम पर 
चोट पर चोट करते हो
तेरे ऐलान पर
करें भरोसा किस दिल से
इस दिल मे घाव गहरे है

हर बार
अपनी ही सुनाते हो
संसद पहुंचाने की
तुम भीख मांगते हो
सांसद बनने पर
कब हमारी सुनते हो

इस बार
हमारी सुन लो
भ्रष्टाचार से हम त्रस्त है
आप अहम से ग्रस्त हैं
सशक्त लोकपाल लेकर आओ
वरना संसद से बाहर जाओ

इस बार
संसद की मर्यादा का सवाल नही
जनता की मांग यूं ठुकराओ नही
अपने दामन को झुठलाओ नही
नाजुक वक्त से तुम मुँह मोड़ो नही
देखो जनता तुमसे क्या चाहती है

इस बार
तिरंगा हाथो मे ले
देखो जनता आती है
अपना संदेश सुनाती है
जनता अलख जगाती है
जागो वरना जनता आती है

इस बार
अहिंसा हमारा नारा है
यही अन्ना का इशारा है
धैर्य जनता ना खो जाएँ कहीं 
इसलिए कदम बढ़ाओ सही
जागो वरना जनता आती है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

सुनो !!! चलो !!! आओ !!!



सुनो !!!
आज़ादी की हमने
देखी और सुनी लड़ाई है
शांति और बलिदान से
पाई हमने पहले भी स्वंत्रता है
आज फिर हम गुलाम बने है
भ्रष्टाचार की हमने डाली बेड़िया है
इससे मुक्ति दिलाने को
देखो आया अब दूसरा गांधी है


भ्रष्टाचार !!!
मेरे अंदर भी है
तेरे अंदर भी है
लेकिन आज
स्वयं से लड़ने को
हमें अब तैयार होना है
अन्ना ने मुझे जगाया है
अब मुझे देश को जगाना है


चलो!!!
एक कदम तुम बढ़ाओ
एक कदम मैं भी बढ़ाऊँ
अन्ना के बढ़े कदम संग
अपने कदम मिलायेँ
भ्रष्टाचार के दानव को
अब अपनी राह से हटायेँ
युवाओं ने अब आंखे खोली है
अन्ना की बंदूक की ये गोली है
नई स्वंत्रता की ये सजी डोली है
यही असली लोकतंत्र की बोली है


आओ!!!
64 सालो से जिसे बढ़ाया
अब इस पर विराम लगायें
मूक था देशवासी अब तक
अब आवाज़ इसे अपनी बनायें
सो रहे हैं नेता जो राजा बनकर
उन्हे अपनी पहचान हम बतायें
साक्षी होगा इतिहास भी
बदलाव देखा है और अब दिखाना है


आओ !!!
इतिहास के पन्नो पर
नाम अपना यूँ लिखवां दें
जल उठी है जो लौ
उसे अब मशाल बना दें
थाम कर हाथ अहिंसा का
राह को अब रोशन कर दें
इस यज्ञ मे आहुति देकर
आओ भ्रष्टाचार को अब मुक्ति दें

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शनिवार, 20 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार - जनता - अन्ना

[भ्रष्टाचार - जनता - अन्ना ]


मूल भूत अधिकारो का हनन एक अपराध है
सवेंधानिक अधिकारो का हनन गैर कानूनी है

रोटी, कपड़ा और मकान,  ये हैं जीवन के आधार
यदि न हो पूर्ण तो, फैलता है जीवन मे भ्रष्टाचार

व्यवसाय से जुड़ गये है जो आज हमारे सारे तंत्र
खतरे मे है आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

व्यवस्था में व्यवसाय का हो गया है यहाँ जो मेल
इसलिए देखो भ्रष्टाचार का नित चलता हैं यहाँ खेल

लोग राजनीति मे आते है धन को खूब लुटा कर
बनकर ये नेता लूटते है खूब जेब भर - भर कर

नेता, अफसर व कर्मचारी दलाली ले खूब धन जोड़ते है
रिश्वत ले सब अपनी खातिर सभी नियमो को तोड़ते है

काला - धन भी भ्रष्टाचार का ही एक प्रमुख अंग है 
इन दोनों मुद्दो पर ही हिंदुस्तान की जनता संग है

लोकपाल बिल नेताओ और नौकरशाहों को बस बचाता है
जनलोकपाल बिल नीचे से ऊपर तक सबकी खबर लेता है

अब तक जनता घुट रही थी इस भ्रष्टाचार से अपने मे
अन्ना ने अब राह दिखाई युवाओ को इससे निपटने मे

भ्रष्टाचार के विरोध मे चली अब जनता मे एक आंधी है
भारत के युवाओ ने देखा अन्ना में आज दूसरा गांधी है

भ्रमित जनता के भीतर एक विश्वास जगाया अन्ना ने है
अहिंसा की ले मशाल जाग उठा जन - जन में अन्ना है

      -प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षा बंधन




~ रक्षा बंधन ~

देव - दानवो के युद्ध मे जब दानव हावी थे 
इंद्राणी ने इन्द्र को तब पवित्र धागा बांधा था  
इस धागे की शक्ति से इन्द्र ने विजय पायी थी 
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था 

विष्णु ने जब राजा बलि से संसार मांग लिया था  
बलि की भक्ति ने विष्णु को तब अपने संग रोका था 
लक्ष्मी ने बांध इसे बलि को विष्णु को तब पाया था 
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था 

शिशुपाल का वध जब कृष्ण ने किया था 
कृष्ण की तर्जनी से बहता खून का रेला था
द्रौपदी ने चीर बांध कृष्ण के खून को रोका था 
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था  

रानी कर्णवती ने हुमायूँ को यह राखी भेजी थी 
हुमायूँ ने फिर बहादुरशाह के संग की लड़ाई थी 
सिकंदर की भार्या ने भी पुरू को राखी भेजी थी 
इस धागे ने ही तब सिकंदर की जान बचाई थी  

केवल बहन भाई के रिश्ते का धोतक नही है 
केवल लेन देन का रिश्ता इसकी सोच नही है 
एक दूजे की रक्षा करने का यह मज़बूत धागा है
स्नेह और समर्पण का यह धागा तो बस गवाह है  

ब्राह्मण इसे यजमान को बांध आपति से बचाता है
सीमा पर सैनिकों का भी ये धागा मनोबल बढ़ाता है 
मित्रो मे भी यह धागा स्नेह और विश्वास जगाता है  
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह शुभ पल आता है  

सभी पाठको को रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामनायें!!!

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

मन की परतें.....



मन की परतें .......

मन बता तेरी कितनी परते है
जिसमे अहसास अपनें भरते है
तुझसे ही अपनी बात करते है
फिर भी कुछ कहने से डरते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मेरे संग ही तू हँसता और रोता है
मेरे संग ही तू जागता और सोता है
मेरे संग ही तू भागता और रुकता है
मेरे संग ही तू सोचता और बोलता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मन के हर कोने में इच्छा बसती है
इसमे ही तो मेरी खुशियाँ पलती है
मेरी हार तुझको भी दुखी करती है
इसमे ही तो मेरी निराशा जलती है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मेरा गुस्सा तुझमें आक्रोश भरता है
मेरा प्यार को तू ही तो समझता है
मेरे दर्द से तू भी व्यथित हो जाता है
मेरे ही सवालो से फिर घिर जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

इसी में डर रिश्तो का समाये रहता है
इसी में रिश्तों को तू बनाए रखता है
दोस्ती की पहचान कभी करा देता है
कभी उन्ही को अंजान तू बना देता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

विश्वास मुझमे जगा तू हौसला देता है
कभी अविश्वास को बीच में ले आता है
वक्त से लड़कर तू मुझे स्थिरता देता है  
पल पल मे फिर क्यों तू बदल जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

पलते है सपने इसमे मेरे अरमानों के
खुलते है पट इसमे मेरी भावनाओ के
जलते है चिराग इसमे मेरी आशाओ के
फलते है वृक्ष इसमे प्रेम और दुआओं के
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

जीवन - संगीत के तुझमें ही छुपे राग है
मिलन - विरह के तुझमे ही बजते साज है
उमर और वक्त की रहती तुझमें छाप है
भक्ति और शक्ति की बसती तुझमें जान है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मन और मैं यूं तो साथ - साथ चलते हैं
पर कभी आपस मेँ ही लड़ते - झगड़ते है
दुविधा और सुविधा को बखूबी पहचानते है
कभी जानकार भी अंजान हम बन जाते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

समाज और देश की चिंता मुझको सताती है
प्रेम और दुश्मनी का भाव मुझमे जगाती है
मन तुझमे ही तो सोच बनती - बिगड़ती है
मन तुझमे ही तो मेरी सारी दुनिया बसती है
मन मुझे पता है तेरी कितनी परतें है ………

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

आंतक ने फिर वार किया



आंतकवाद ही नाम इस दशहत का है
जो आए दिन भारत मे खून बहाता है
मासूम लोगो के चिथड़े उड़ा ले जाता है
बस एक लहर क्रोध की ही छोड़ जाता है

मुंबई मे बम विस्फोट कायरो ने किया
हिंदुस्तान को फिर आज घायल किया
सहनशीलता पर आघात फिर से किया
भारत के सीने मे आंतक ने वार किया

इस घटना का देख दुखी होते हम लोग
इसे कुछ दिन जिंदा रख पाते हम लोग
अपने न हो तो फिर भूल जाते हम लोग
दर्द का रिश्ता नही जोड़ पाते  हम लोग

बेकसूर है मारे जाते इन हादसो मे
बिछड़ जाते है अपने इन हादसो मे
खून जनता का बहता इन हादसो मे
राजनीति ये नेता करते इन हादसो मे

बाते बना, दे जाते दवा सहानुभूति की
भुगत रही जनता, नाकामी नेताओ की
इन लाशों पर सब चलना सीख गए है
हमे तो चलना है, चिंता है सबको कल की

जन जन हिंदुस्तान को अब तैयार है होना
स्वार्थ छोड़, समाज के लिए अब है कुछ करना
अपनों की सुरक्षा को मकसद है अब बनाना
आंतक या झूठे नेता, सबको है सबक सिखाना

वंदे मातरम !!!

प्रतिबिंब बड्थ्वाल

रविवार, 26 जून 2011

आओ आज़ादी का जश्न यूं मनाये



आओ आज़ादी का जश्न यूं मनाये

आओ आज़ादी का जश्न यूं मनाये
स्वार्थ को स्वयं से दूर हम  हटाये
बुराई को समाज से हम दूर भगाये
संस्कृति अपनी विश्व मे हम फैलाये
देश  द्रोहियों को सबक हम सिखाये
आओ देश हित मे हम एक हो जाये
शहीदो को याद कर शीश नवायें
हालात मांगे तो हम शीश चढ़ाये
कर्तव्यनिष्ठ होकर देश को उन्नत कराये
सच्चे नागरिक बन अपना फर्ज़ निभाये
वक्त  आया, इसके साथ कदम बढ़ाये
अपने भारत को बुरी नज़र से बचाये
जन जन मे 'प्रतिबिंब' ये संदेश जगाये
येसा देश प्रेम का गीत हम गुनगुनाये

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

बुधवार, 22 जून 2011

हम हिन्दुस्तानी




हम हिन्दुस्तानी

देश प्रेम का राग हर कोई अलापे
हर कोई प्रेम की माला यहाँ जापे
नोट रिश्वत के यहाँ हर कोई छापे
मन किसी का कोई न यहाँ भापे

तिरंगे की शान में सब कसीदे पढ़ते
देश के नाम पर हैं सब सजदे करते
मर जाएंगे कट जाएंगे सब है कहते
लेकिन आए मौका तो घर मे छुपते

अहिंसा का ढ़ोल पीटते इसे ही हथियार कहते
जो शहीद हुये उन्हे तो हम आतंकवादी कहते
वोटो के लिए धर्म - जाति का हैं सहारा लेते
राष्ट्र एकता के नाम पर जनता से सब खेलते

अपनी आज़ादी को अब स्वार्थ में मिला दिया है
पाश्चात्य को अपनी संस्कृति से बड़ा बना दिया है
मान - मर्यादा, आदर - सत्कार सब भुला दिया है
आज़ादी के नाम पर खुद को बाज़ार बना दिया है

सोने की चिड़िया देश था हमारा, ये कह कर गौरव पाते
वक्त आने पर देश को बेचे, येसा काम हम हैं कर जाते
अमीरी को रुतबा माने, गरीबी को चित्रो व लेखो मे पाते
कृषि प्रधान देश मे ही किसान आत्महत्या है करते जाते

खेल मे शूट 3 करोड़ पाते, सीमा के शूटर वीरगति मे 5 लाख पाते
गुरुओं का अपमान बेझिझक कर जाते, आंतकियों से प्रेम हम जताते
राष्ट्र सर्वोपरि कहकर चुप हो जाते, देश की संपति को बाहर हैं भेजते
अँग्रेजी से मोह को बड़प्पन माने, राष्ट्र भाषा हिन्दी को हैं भूलते जाते

स्वतन्त्रता के अधिकार को बस अपना अधिकार माना है
जो चाहे कहना, जैसे चाहे रहना बस अपना हक जाना है
धर्म कर्म को मज़ाक बनाया, आजादी बस इसको माना है
यह सब कर पाता हूँ इसलिए खुद को हिन्दुस्तानी माना है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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