हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल),उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने"अंबर" नाम से कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने हिन्दी में शोध की परंपरा और गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे उत्तराखंड की ही नही भारत की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला. उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल)के प्रति भी उनका लगाव था.
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके शोधकार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोयट्री'- अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशनमें किया था) के लिये.
उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फारसी के शब्दो और बोली को भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना. उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं. उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.
निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती है.
· रामानन्द की हिन्दी रचनाये ( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)
· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (स. श्री गोबिंद चातक)
· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का संकलन व सम्पादन)
· सूरदास जीवन सामग्री
· मकरंद (स. डा. भगीरथ मिश्र)
· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)
· 'कणेरीपाव'
· 'गंगाबाई'
· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',
· 'कवि केशवदास'
· 'योग प्रवाह' (स. डा. सम्पूर्णानंद)
उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब भी उनकी पुस्तके प्रकाशित करती है. कबीर,रामानन्द और गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ० पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ०बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.
"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है
" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं,क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी,परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है".
उन्होने बहुत ही कम आयु में इस संसार से विदा ले ली अन्यथा वे हिन्दी में कई और रचनाओ को जन्म देते जो हिन्दी साहित्य को नया आयाम देते. डॉ० संपूर्णानंद ने भी कहा था यदि आयु ने धोखा न दिया होता तो वे और भी गंभीर रचनाओं का सर्जन करते'
उतराखंड सरकार, हिन्दी साहित्य के रहनुमाओ एवम भारत सरकार से आशा है कि वे इनको उचित स्थान दे.
(आप में से यदि कोई डॉ० बड़थ्वाल जी के बारे में जानकारी रखता हो तो जरुर बताये)
हमें तो आपसे जानकारी मिल रही है
जवाब देंहटाएंहम क्या बतलायें
पूछने वालों में से हैं हम।
हिंदी-भारत ब्लाग पर भी इनके बारे में पढ़ने को मिला। आभार।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी एवम प्रसाद जी शुक्रिया. यही तो मै चाह रहा था कि लोग उन्हे जाने पर शायद कही न कही हिन्दी के साहित्यकारो मे पक्षपाती रवैया उन्हे कभी प्रकाश मे नही लाया. यहा तक कि ब्लाग मे भी बहुत कम लोगो ने पढना चाहा इसे. शायद इस तरह की पोस्ट उन्हे भाती नही है..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंI know that he first wrote his thesis in hindi, which got rejected and then translated everything back into english, for submission, which made his Ph. D. possible.
जवाब देंहटाएंHe was in some relation on my fathers side, so often I have heard a lot about him, in Lansdowne during my childhood.
स्वपनदर्शी जी बहुत आभार. मै बहुत पहले चाह रहा था लिखना लेकिन किसी कारणवश लिख नही पाया. यहां तक कि फूफू लोग (डा. साहब की पुत्रिया) भी अपने पारिवारिक जिम्मेदारियो के साथ इस पर जद्दोज़हद नही कर पाई. मैने फुफू से पिछले महिने बात की थी कि कुछ उनके पास और जानकारी हो तो भेजे जिसे मै प्रेषित कर सकू. लेकिन वो बता रही थी उनके सारे ही लेख और किताबे इधर उधर है और लोगो ने इसका भरपूर फायदा उठाया अपने शोध कार्यो और लेखो मे, लेकिन वे बस हवाले के तौर पर ही इस्तेमाल हुये. खैर इस बार जब भारत जाना होगा तो अवश्य ही कुछ जानकारी हासिल करुंगा और प्रषित करुंगा.
जवाब देंहटाएंbahut hi achha lekh hai magar ek chota sa correction..."स्वन्त्रत भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी)"....sayad "स्वन्त्रत भारत" isme misprint ho gaya hai...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंDr. Pitambar Barthwal hindi sahitya mein ek samadrit naam hai. Aapne jo nakaratamk jankariyan jutai hain, unhen zaroo aage badhayen, aapko anekanek logo ka samrathan milega. Mera samrathan to hai hee.
जवाब देंहटाएंप्रताप जी शुक्रिया! डा.बडथ्वाल जी का नाम केवल कुछ लोगो तक सीमित हो कर रह गया था और मैने सोचा क्यो न उस नाम को उन सभी तक पहुंचाया जाये जो परिचित नही है. शायद एक शुरुआत कर दी है और आप जैसे लोगो का आशीर्वाद रहा मार्गदर्शन के साथ तो अवश्य ही इसमे सफल्ता मिलेगी.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर जी...आपका बहुत बहुत धन्यवाद, साहित्य जगत की एक महान शख्शियत से परिचय कराने के लिए...ये एक विडम्बना ही है कि साहित्य जगत में कितने ही महान लोग आज तक गुमनामी का अँधेरे में है, आप के द्वारा किया गया प्रयास बहुत ही प्रशंसनीय है, आशा है आगे भी आप इसी तरह साहित्य जगत के इसी तरह के "मील के पत्थर" को सामने लाने का प्रयास करेंगे...हम सब आपके साथ हैं !!!
जवाब देंहटाएं- सादर
प्रिय मित्रवर प्रितम जी
जवाब देंहटाएंआभार ! डा साहिब के बारे में लिखकर और उनके बारे में हिंदी वालो को बताने का जो परियास आपने की किया वो सराहनिया !
मुझे दो बार पाली जाने का सौभाग्य मिला ! एक तो जब मै अपनी पहली फीचर फिल्म बनाने का प्रयास कर रहा था ! वहा रहा ! होली से एक दिन पूरब की बात थी जब आने लगा तो सब लोगो ने अनुरोध किया की आप कल रुके , फिर जाना .. दुसरे दिन होली के कुछ साट लिए ! उनका वो मकान , जहा पर श्रीधेय डा साहिब ने जन्म लिया और अँतिम सास ली को मै कभी नहीं भुला पाउँगा ! वो मेरे लिए किसी बदरी नाथ के मदिर से कम नहीं था !
उनका लिखा और और जो रास्ता उन्होंने हमे बताया उसका ऋण तो हम कभी नही दे पायेंगे ! आज तो हिंदी में चाटुकारों और इसी जमात पैदा हो गई जो असली हिंदी के लेखको को अनदेखा सब कुछ अपने नाम करवाने में तुले है ! उन चाटुकारों को नमन ! उनकी चाटुकारिता के लिए " जिदाबाद " !
पराशर गौड़
पराशर गौड जी सादर नमस्कार्!! शुर्किया इन शब्दो के लिये, खुशी होती है जब अपने लोग प्रोत्साहित करते है.डा़.बडथ्वाल जी के बारे मे लोगो को बताना और उनके कार्यो को उज़ागर करना ही एक मात्र उद्देश्य है जिसे हिन्दी के कर्ता धर्ताओ ने एक तरह से भुला दिया है.शायद इस प्रयास में वे लोग भी जुडेगे जो किसी तरह से उनसे जुडे है.
जवाब देंहटाएंआप ने भी उत्तराखंड की प्रथम फिल्म(जग्वाल) बनाकर एक नया इतिहास रचा था.और आज भी उत्तराखंड और हिन्दी के प्रति आपका प्रेम गौराविंत करता है.हम सदैव आभारी रहेगे.
Thanks for sharing. I came to know about Dr. Pitambar Dutt Barthwal through this post only. Would like to know more through you.
जवाब देंहटाएंRegards,
Wonderful Post !!
जवाब देंहटाएंThanx for sharing Pratibimb ji
Un mahaan sahitykaar ko mera naman !!
यही होता है सर नींव के पत्थर के साथ उसे दुनिया की रौशनी नहीं मिलती .. साहित्य जगत के हालात तो ये हैं की सोर्स है तो आप छपेंगे दुनिया जानेगी ..वो लोग कुछ और थे .. तब लेखक इमानदारी और जिम्मेदारी महसूस करता था उसे लाइम लाईट की चाह नहीं थी .. जो सत्य और तथ्य पूर्ण या समाज के हित में था वही लिखा जाता था .... अब तो लेखक भी दलित और सवर्ण हो गए...श्रद्धेय पीताम्बर दत्त जी ने जो लिखा उसके लिए हमें कृतग्य होना चाहिए .. वे आध्यात्मिक, सामजिक और बौद्धिक स्तर पर कहीं ज्यादा प्रखर थे वर्तमान के मुकाबले ... प्रतिबिम्ब जी आपको साधुवाद .. मेरा भी ज्ञान वर्धन हुआ मैं अन्य मित्रों को भी इसे भेज रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंWonderful Post bhai ji..........
जवाब देंहटाएंThanks for sharing this wid us.....
बहुत खुशी ओर गर्व हो रहा है, आप जैसा जोश ओर लगन जिस भाषा प्रेमी में हो, वो कभी अंधकार में विलिन नही रह सकती। बस हमें बढना है थकना नहीं। साधुवाद
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