तू अपने मन के अंतर्मन में
छुपा कर बैठा ना जाने क्या ?
रहता चुप ना जाने किस भय से तू
हर मोड पर दिखता असहाय क्यो?
पीडा सहता ना जाने दर्द कैसा झेले तू
हर वेदना को पनपने देता है क्यो?
दु:ख का साया पल पल सताये
हर हार में खामोश दिखता है क्यो?
गम में बिलखता, रोता चुपचाप है तू
हर संताप में अकेले रहता है क्यो?
शून्य सा हो जाता है हर जबाब में तू
जिनका उतर नही, प्रश्न येसे पूछता है क्यो?
-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
wah Pratibimb jee wah
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