मेरा चिंतन - चिंतन मेरे मन का
मन बहुत उतावला होता है। इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है। चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी। आप भी मेरी इस कशमकश के साथी बनिये, साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया,विचार और राय के साथ्। तेरे मन मे आज क्या है लिख दे "चिन्तन मेरे मन का" के पटल पर यार, हर पल तेरी कशिश का फ़साना हो या फ़िर तेरी यादो का सफ़र मेरे यार।
बुधवार, 3 अप्रैल 2024
विरह की वेदना
सोमवार, 1 अप्रैल 2024
प्रतिबिम्ब की बात
जिस में संघर्ष, दु:ख और सुख साथ साथ होता है
अपने चेहरे पर मुस्कान, आँखों में चमक रखता हूँ
लेकर साहसी दिल, हर चुनौती का सामना करता हूँ
जीवन सदैव निष्पक्ष और उज्ज्वल नहीं, ये मानता हूँ
लेकर सपना सफलता का, कर्तव्य मार्ग पर चलता हूँ
आत्मा की सुनकर आवाज, इच्छा मेरी कभी टूटी नहीं
राह में लड़खड़ाया, उठा लेकिन आत्मा कभी सोई नहीं
अच्छे, सच्चे मन से कार्यों को पूरा करने का है संकल्प
परिवर्तन की हवा संग, जोड़ रहा हूँ मैं नित नए प्रकल्प
जीवन की इस यात्रा में, हर पल नया सिरा जुड़ता जाता है
प्रतिबिम्ब जीवन का खिलता, निखरता आगे बढ़ता जाता है
1 अप्रैल, 2024 दिल्ली, भारत
सोमवार, 1 जनवरी 2024
बदल दिए हालात
~बदल दिए हालात~
(बिग बास थीम सांग से प्रेरित)
बदल गया है माहौल
हर पल बदलता खेल
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल गया है साल
बदल गए है दोस्त
बदले लोगों के जज़्बात
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल गया है संसार
नया मिलता है साथ
पुरानो से छुड़ाते हाथ
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल गई है चाहत
बदल दिया है विचार
रिश्ते बन गए व्यापार
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल गया हूँ मैं
बदल गया हैं वो
अब दुआ सलाम नहीं
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल गए हैं ‘रेट’
बदल गए है ‘फेवरेट’
जुड़ते जहां मिलता ‘वेट’
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
बदल रहा है दौर
बदली सबने है चाल
ठोक रहे अपनी ताल
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०१ / ०१ /२०२४
गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023
इस पटल पर
मैं इस पटल पर, जो कुछ भी लिखता हूँ
भाव अपने यहाँ, आपसे सांझा करता हूँ
वैसे अब शब्द यहाँ, ठहरते हैं कहाँ
अब दौड़ते हैं वहाँ, मिलती भीड़ जहाँ
ज्ञान बँटता नहीं, अब केवल बिकता है
टूट रही परंपराएं, अब पैसा दिखता है
बदल गई सीमाएं, पुस्तकें अकेली लगती हैं
साहित्य व्यापार हुआ, अब बोलियाँ लगती है
मेरे लिए तो हर पल, यहाँ अमृत वेला है
भाव और शब्दों का, जहाँ लगता मेला है
'प्रतिबिम्ब' आपका, नया अस्तित्व ले खड़ा हो
भाषा के साथ, साहित्य व संस्कृति से जुड़ा हो
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल,12 अक्टूबर 2023
मंगलवार, 15 अगस्त 2023
वीर सपूतों की चाह
वो भारत का सम्मान लिए, चला था
छोड़ कर घर, भारत का बेटा बना था
समर्पित होकर, देश के लिए लड़ा था
न्यौछावर जीवन, माँ के लिए किया था
माँ भारती का लाडला बन, आज लौटा था
सम्मान में तिरंगा तन से उसके लिपटा था
माटी का उसने तब, तिलक किया था
माँ को झुक कर तब, प्रणाम किया था
चौड़ा सीना लिए तब, वो आगे खड़ा था
आँखों में रोष तब, उसका हौसला बड़ा था
रणभूमि पर तब, खूब कौताहुल मचा था
दुश्मन से लड़ने तब, हर जवान खड़ा था
उनके नापाक इरादों को, तब ध्वस्त किया था
गोलियों से भूनकर, ढ़ेर दुश्मनों को किया था
शत्रुओं को अपना दम उसने, खूब दिखाया था
शत्रुओं के हर बढ़ते कदमों को, उसने रोका था
खाकर गोली सीने पर, फिर भी अटल खड़ा था
हर सीमा प्रहरी का, मनोबल वो ही तो बना था
लड़ने का हौसला, उसका हर पल जिंदा था
अपनी शेष सांसो का भी, उसे सहारा था
जीत का लेकर भाव. स्वाभिमान प्रबल था
आँखों में उसकी, उभरता क्रोध प्रखर था
चुन चुन कर जिसने, शत्रुओं को मारा था
आज रक्त रंजित, शरीर स्थिल वहाँ पड़ा था
इच्छा फिर भी, उसे अभी भी लड़ना था
शत्रुओं को अपने, नाकों चने चबवाना था
घायल शरीर था, मौत को गले लगना था
उससे पहले ऊँचे शिखर, तिरंगा फहराना था
रंक्त रंजित हौसलों का, फैला तब यशगान था
जीत, माँ भारती को वीर सपूतों का उपहार है
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
15 अगस्त 2023, दिल्ली
बुधवार, 22 मार्च 2023
घर – घर होती जय जयकार
नवरात्र उत्सव आया, उत्साह उमंग घर – घर
हो रही घट स्थापना, बुलावा है माँ घर - घर
आस्था, भक्ति और विश्वास की लहर घर – घर
तेरे लिए ही माँ, अखण्ड जोत जली घर – घर
नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार
शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार
नौ दिन हैं ये शुभ दिन, तेरी महिमा है अपरंपार
भव्यता तेरी विशाल, शक्ति का तू है तो अवतार
इस भवसागर में कृपा तेरी, बन जाती है पतवार
हे सुखदात्री, हे कष्टहारिणी, नमन तुम्हें बारंबार
नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार
शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार
शैलपुत्री हिमराज सुता, ब्रह्मचारिणी दु:खहारिणी
चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता तुम ही जगतारिणी
कात्यायनी, कालरात्रि, तुम धैर्यदात्री, दैत्यसंहारिणी
महागौरी कुंदन सुमन, सिद्धिदात्री तुम पालनकारिणी
नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार
शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार
तेरी कृपा से सलिल, सरिस, पावन जीवन पायें
मन के कलुष, क्लेश, कुत्सित सोच दूर भगायें
विश्वास, आस्था, कामना संग, तुझ से जुड़ जायें
सुखी तन, मन, धन का, तेरा आशीर्वाद हम पायें
नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार
शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - २२ मार्च, २०२३
सोमवार, 20 मार्च 2023
पहचान मुश्किल
हटी कुछ धूल, चेहरा धुंधला सा है
दर्पण में चेहरा, अपरिचित सा है
अंतर्मन कुछ, चित परिचित सा है
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
चाह भी, बदलने लगी है अब राह
पथराये चक्षु, निकलती बस आह
ग़मों की धरती, मिलती नहीं थाह
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
छिप रही किरण, उजाले की ओट से
सिमट रहा रिश्ता, अपनों की चोट से
बढ़ती रही दूरियां, मन उपजे खोट से
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
रास्तों के सुमन, मुरझा गए धूप में
सिमट रही आभा, उजालों की मौज में
गूँज रही सदा, खोखले से आवरण में
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 20/3/2023
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023
मन की बात
तेरे मेरे मन की यहाँ होती बात
देश प्रेम की यहाँ होती बात
दिन प्रतिदिन की यहाँ होती बात
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात
सहज और सरल ढंग से समझाते
हर मुद्दों पर देश की सोच बताते
जनमानस को इसमें शामिल करते
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात
हर भाषा हर राज्य की आती बात
चेतना और चिंतन की होती बात
संस्कृति, संस्कार से जुड़ने की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात
नई प्रतिभाओ से मिल बनती बात
देश, विदेश और इतिहास की बात
प्रकृति सरंक्षण व संवर्धन की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात
प्रेरक प्रसंगो से जोड़ते सबको
कर्तव्य पथ का मार्ग समझाते
श्रेष्ठ भारत का गौरव हमें बताते
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
१०/२/२०२३
( "मन कि बात प्रतियोगिता" जिंगल हेतु लिखा गया - गीत प्रस्तुति वसुंधरा रतूड़ी )
https://youtube.com/shorts/f2FYTtR0MaE?si=EnSIkaIECMiOmarE
शनिवार, 31 दिसंबर 2022
शेष रह गया जो ...
अंत में कुछ लिखना चाहता हूँ
पर आरम्भ कहाँ से करूँ
सभी कुछ तो
अंत की ओर अग्रसित है
जिज्ञासा प्रारम्भ है
शास्वत सत्य तो अंत ही है
और अंत में शेष बचता क्या है?
भावो को शब्द देता रहा
और ‘मैं’ लिखता रहा
कुछ कहा और अनकहा भी
समाज भी और देश भी
संस्कृति और संस्कार भी
हास्य भी और परिहास भी
सुख भी और दुःख भी
प्रकृति भी और प्रलय भी
हिंदी प्रेम भी और मातृभाषा प्रेम भी
सत्य भी और असत्य भी
प्रेम भी और विरह भी
विश्वास भी और अविश्वास भी
आचार भी और विचार भी
अंतर भी और समानता भी
मन का भी और अनमना भी
तर्क भी और कुतर्क भी
फिर भी कुछ रह गया शेष
संवेदनाओं को भुनाता रहा
अंगुलियाँ सब पर उठाता रहा
नैतिकता दूसरों को पढ़ाता रहा
स्वयं को ‘मैं’ आगे बढ़ाता रहा
प्रश्न तुम पर खड़ा करता रहा
नाम ‘प्रतिबिम्ब’ लिखता रहा
नाम फिर भी अपना तलाशता रहा
वर्चस्व अपना सदैव ढूंढता रहा
नव चेतन मन की, बात नई लिखूँगा
आज जो लिखूँगा, नि:संकोच लिखूँगा
जो कहा वह लिखूँगा, पुन: लिखूँगा
रह गया जो शेष, वह सब लिखूँगा
शून्य हो जाने तक, ‘मैं’ पूर्ण लिखूँगा
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 31 दिसम्बर. 2022
रविवार, 25 दिसंबर 2022
आवरण
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 25 दिसम्बर 2022