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बुधवार, 3 अप्रैल 2024

विरह की वेदना

 




 

विरह से आत्मा की गहराई में, दुःख बसा रहता है,
दर्द जो मजबूत है, लेकिन इसे छिपाना मुश्किल है।
विरह का वजन, इसे दबाता और दबाता रहता है,
यह बोझ बहुत भारी है, इसे दबाना मुश्किल है।
 
जीवन के सुख सारे, फीके और कम हो जाते हैं,
जीवन के दुखों के रूप में, वे साथ चलते जाते हैं।
सुलझाने के हर प्रयास, हर मोड़ पर असफल होते हैं,
जितनी अधिक पीड़ा, उतना ही प्रेम को जमानत देते हैं।
 
दिल में दर्द होता है, आत्मा ज्यों टूटती जाती है,
भाग्य की जंजीरों के रूप में, वे कसती जाती हैं।
कभी आँसू रोने से बहते, कभी सूख जाते हैं,
जीवन में दर्द, बढ़ता और बढ़ता ही जाता है।
 
बाहर की दुनिया, यह बहुत उज्ज्वल लगती है,
लेकिन स्वयं के लिए सिर्फ ठंडी, अंधेरी रोशनी है।
हँसी और जयकार के घोष, चारों तरफ गूँजते हैं,
लेकिन विरह में, ये सिर्फ खोखले झुकाव लगते हैं ।
 
दिल में खालीपन और अकेलापन, दर्द पैदा करता है,
बिछोह से उमड़ा अहसास, अपनों से दूर ले जाता है।
जिस प्रेम को खोजते हैं, वह बच कर निकल जाता है,
जीवन के दुःख के रूप में, यह पीछा करता रहता है।
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, दिल्ली (भारत)

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

प्रतिबिम्ब की बात

 



प्रतिबिम्ब भी इसी दुनिया में, रहता और जीता है
जिस में संघर्ष, दु:ख और सुख साथ साथ होता है

अपने चेहरे पर मुस्कान, आँखों में चमक रखता हूँ
लेकर साहसी दिल, हर चुनौती का सामना करता हूँ

जीवन सदैव निष्पक्ष और उज्ज्वल नहीं, ये मानता हूँ
लेकर सपना सफलता का, कर्तव्य मार्ग पर चलता हूँ

आत्मा की सुनकर आवाज, इच्छा मेरी कभी टूटी नहीं
राह में लड़खड़ाया, उठा लेकिन आत्मा कभी सोई नहीं

अच्छे, सच्चे मन से कार्यों को पूरा करने का है संकल्प
परिवर्तन की हवा संग, जोड़ रहा हूँ मैं नित नए प्रकल्प

जीवन की इस यात्रा में, हर पल नया सिरा जुड़ता जाता है
प्रतिबिम्ब जीवन का खिलता, निखरता आगे बढ़ता जाता है

1 अप्रैल, 2024 दिल्ली, भारत 

सोमवार, 1 जनवरी 2024

बदल दिए हालात

 



~बदल दिए हालात~

(बिग बास थीम सांग से प्रेरित)


बदल गया है कैलेंडर
बदल गया है माहौल
हर पल बदलता खेल
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल गया है साल
बदल गए है दोस्त
बदले लोगों के जज़्बात
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल गया है संसार
नया मिलता है साथ
पुरानो से छुड़ाते हाथ
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल गई है चाहत
बदल दिया है विचार
रिश्ते बन गए व्यापार
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल गया हूँ मैं
बदल गया हैं वो
अब दुआ सलाम नहीं
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल गए हैं ‘रेट’
बदल गए है ‘फेवरेट’
जुड़ते जहां मिलता ‘वेट’
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

बदल रहा है दौर
बदली सबने है चाल
ठोक रहे अपनी ताल
फ़ेसबुक तूने क्या किया
बदल दिए हालात

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०१ / ०१ /२०२४ 

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

इस पटल पर

 




मैं इस पटल पर, जो कुछ भी लिखता हूँ
भाव अपने यहाँ, आपसे सांझा करता हूँ

वैसे अब शब्द यहाँ, ठहरते हैं कहाँ
अब दौड़ते हैं वहाँ, मिलती भीड़ जहाँ

ज्ञान बँटता नहीं, अब केवल बिकता है
टूट रही परंपराएं, अब पैसा दिखता है

बदल गई सीमाएं, पुस्तकें अकेली लगती हैं
साहित्य व्यापार हुआ, अब बोलियाँ लगती है

मेरे लिए तो हर पल, यहाँ अमृत वेला है
भाव और शब्दों का, जहाँ लगता मेला है

'प्रतिबिम्ब' आपका, नया अस्तित्व ले खड़ा हो
भाषा के साथ, साहित्य व संस्कृति से जुड़ा हो

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल,12 अक्टूबर 2023

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

वीर सपूतों की चाह

 



वो भारत का सम्मान लिए, चला था

छोड़ कर घर, भारत का बेटा बना था

समर्पित होकर,  देश के लिए लड़ा था

न्यौछावर जीवन, माँ के लिए किया था 

माँ भारती का लाडला बन, आज लौटा था

सम्मान में तिरंगा तन से उसके लिपटा था


माटी का उसने तब, तिलक किया था

माँ को झुक कर तब, प्रणाम किया था

चौड़ा सीना लिए तब, वो आगे खड़ा था

आँखों में रोष तब, उसका हौसला बड़ा था 

रणभूमि पर तब, खूब कौताहुल मचा था

दुश्मन से लड़ने तब, हर जवान खड़ा था

 

उनके नापाक इरादों को, तब ध्वस्त किया था

गोलियों से भूनकर, ढ़ेर दुश्मनों को किया था

शत्रुओं को अपना दम उसने, खूब दिखाया था 

शत्रुओं के हर बढ़ते कदमों को, उसने रोका था 

खाकर गोली सीने पर, फिर भी अटल खड़ा था

हर सीमा प्रहरी का, मनोबल वो ही तो बना था


लड़ने का हौसला, उसका हर पल जिंदा था

अपनी शेष सांसो का भी, उसे सहारा था

जीत का लेकर भाव. स्वाभिमान प्रबल था

आँखों में उसकी, उभरता क्रोध प्रखर था

चुन चुन कर जिसने, शत्रुओं को मारा था 

आज रक्त रंजित, शरीर स्थिल वहाँ पड़ा था


इच्छा फिर भी, उसे अभी भी लड़ना था

शत्रुओं को अपने, नाकों चने चबवाना था  

घायल शरीर था, मौत को गले लगना था

उससे पहले ऊँचे शिखर, तिरंगा फहराना था

रंक्त रंजित हौसलों का, फैला तब यशगान था

जीत, माँ भारती को वीर सपूतों का उपहार है 

  


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

15 अगस्त 2023, दिल्ली 



बुधवार, 22 मार्च 2023

घर – घर होती जय जयकार



नवरात्र उत्सव आया, उत्साह उमंग घर – घर

हो रही घट स्थापना, बुलावा है माँ घर - घर

आस्था, भक्ति और विश्वास की लहर घर – घर

तेरे लिए ही माँ, अखण्ड जोत जली घर – घर


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


नौ दिन हैं ये शुभ दिन, तेरी महिमा है अपरंपार

भव्यता तेरी विशाल, शक्ति का तू है तो अवतार

इस भवसागर में कृपा तेरी, बन जाती है पतवार

हे सुखदात्री, हे कष्टहारिणी, नमन तुम्हें बारंबार


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


शैलपुत्री हिमराज सुता, ब्रह्मचारिणी दु:खहारिणी

चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता तुम ही जगतारिणी

कात्यायनी, कालरात्रि, तुम धैर्यदात्री, दैत्यसंहारिणी

महागौरी कुंदन सुमन, सिद्धिदात्री तुम पालनकारिणी


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


तेरी कृपा से सलिल, सरिस, पावन जीवन पायें

मन के कलुष, क्लेश, कुत्सित सोच दूर भगायें

विश्वास, आस्था, कामना संग, तुझ से जुड़ जायें

सुखी तन, मन, धन का, तेरा आशीर्वाद हम पायें


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - २२ मार्च, २०२३

सोमवार, 20 मार्च 2023

पहचान मुश्किल

 



हटी कुछ धूल, चेहरा धुंधला सा है

दर्पण में चेहरा, अपरिचित सा है

अंतर्मन कुछ, चित परिचित सा है

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


चाह भी, बदलने लगी है अब राह

पथराये चक्षु, निकलती बस आह

ग़मों की धरती, मिलती नहीं थाह

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


छिप रही किरण, उजाले की ओट से

सिमट रहा रिश्ता, अपनों की चोट से

बढ़ती रही दूरियां, मन उपजे खोट से

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


रास्तों के सुमन, मुरझा गए धूप में

सिमट रही आभा, उजालों की मौज में

गूँज रही सदा, खोखले से आवरण में

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 20/3/2023



शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

मन की बात

 




तेरे मेरे मन की यहाँ होती बात
देश प्रेम की यहाँ होती बात
दिन प्रतिदिन की यहाँ होती बात
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात

सहज और सरल ढंग से समझाते
हर मुद्दों पर देश की सोच बताते
जनमानस को इसमें शामिल करते
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात

हर भाषा हर राज्य की आती बात
चेतना और चिंतन की होती बात
संस्कृति, संस्कार से जुड़ने की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

नई प्रतिभाओ से मिल बनती बात
देश, विदेश और इतिहास की बात
प्रकृति सरंक्षण व संवर्धन की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

प्रेरक प्रसंगो से जोड़ते सबको
कर्तव्य पथ का मार्ग समझाते
श्रेष्ठ भारत का गौरव हमें बताते
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
१०/२/२०२३
( "मन कि बात प्रतियोगिता" जिंगल हेतु लिखा गया - गीत प्रस्तुति वसुंधरा रतूड़ी )
https://youtube.com/shorts/f2FYTtR0MaE?si=EnSIkaIECMiOmarE

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

शेष रह गया जो ...

 


अलविदा हो रहा वर्ष
अंत में कुछ लिखना चाहता हूँ
पर आरम्भ कहाँ से करूँ 
सभी कुछ तो 
अंत की ओर अग्रसित है
जिज्ञासा प्रारम्भ है 
शास्वत सत्य तो अंत ही है 
और अंत में शेष बचता क्या है? 

अब तक ‘मैं’ लिखता रहा 
भावो को शब्द देता रहा
और ‘मैं’ लिखता रहा  
कुछ कहा और अनकहा भी
समाज भी और देश भी
संस्कृति और संस्कार भी
हास्य भी और परिहास भी 
सुख भी और दुःख भी
विकास भी और विनाश भी
प्रकृति भी और प्रलय भी
हिंदी प्रेम भी और मातृभाषा प्रेम भी
सत्य भी और असत्य भी  
प्रेम भी और विरह भी
विश्वास भी और अविश्वास भी 
आचार भी और विचार भी
अपमान भी और सम्मान भी
अंतर भी और समानता भी
मन का भी और अनमना भी
तर्क भी और कुतर्क भी
फिर भी कुछ रह गया शेष

लिखता रहा, गुणता रहा 
संवेदनाओं को भुनाता रहा 
अंगुलियाँ सब पर उठाता रहा 
नैतिकता दूसरों को पढ़ाता रहा
स्वयं को ‘मैं’ आगे बढ़ाता रहा
प्रश्न तुम पर खड़ा करता रहा
नाम ‘प्रतिबिम्ब’ लिखता रहा 
नाम फिर भी अपना तलाशता रहा
वर्चस्व अपना सदैव ढूंढता रहा 

नववर्ष में, नए जोश संग सोच लिखूँगा
नव चेतन मन की, बात नई लिखूँगा
आज जो लिखूँगा, नि:संकोच लिखूँगा
जो कहा वह लिखूँगा, पुन: लिखूँगा
रह गया जो शेष, वह सब लिखूँगा
शून्य हो जाने तक, ‘मैं’ पूर्ण लिखूँगा


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 31 दिसम्बर. 2022


रविवार, 25 दिसंबर 2022

आवरण



मेरा सनातन व्यक्तित्व, कुछ बदला सा है 
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है 
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है 
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है 
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं 
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है 
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है 
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है 
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है 
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है

आकांक्षाओं और स्वार्थ से, पोटली भरी है 
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है  
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है 
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं 
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है 
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है 
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है 
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है 
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है 

संस्कृति, संस्कार और साहित्य धरोहर है 
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है 
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है 
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है 
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है 
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है 
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है 
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 25 दिसम्बर 2022


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