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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

'डे' - वेलेंटाइन दिवस पर खास



वेलेंटाइन दिवस की परंपरा 1992 तक भारत में इतनी पकड़ नहीं बना पाई थी. वाणिज्यिक/व्यवसायिक टीवी चैनलों जैसे एम् टीवी , समर्पित रेडियो कार्यक्रमों और प्रेम पत्र प्रतियोगिताओं की वजह से फैला साथ ही इसमें आर्थिक उदारीकरण ने वेलेंटाइन कार्ड के उद्द्योग को बढ़ावा दिया. इसके बाद ही यह बदलाव देखा गया कि आम जानता के बीच में अपने प्रेमका इजहार आम हुआ. इसका असर यह हुआ कि जो बाते प्रेम की व्यक्तिगत होती थी और चारदीवारी के भीतर ही उसकी पवित्रता को संजो कर रखा जाता था, अब उसे लोग पश्चिम सभ्यता की तरह सरे आम प्रदर्शित करने में हिचकते नही. ये उद्द्योग का ही असर है कि हम हर रिश्तो को अब दिनों में भुनाना सीख गए है. घर पर माँ - पिता, भाई - बहन, पति - पत्नी का आदर/प्रेम करे या न करे लेकिन पब्लिक/जनता में खूब प्रचार प्रसार किया जाता है. अब माध्यम भी इतने हो गए है कि नैतिक बाते हो चाहे रिश्ते अब केवल दिखावे का सामान बन कर रह गए है.

चंद पंक्तियाँ 'डे' [day] से प्रेम पर

'डे'

भूले अपनी संस्कृति, खुद को 'डे' में उलझा दिया
हर रिश्तो को हमने अब, केवल 'डे' में बदल दिया

प्रेम व् पवित्रता की सीमा तोड़, 'डे इवेंट' बना दिया
पश्चिम को अपना बना, दिलो को अब 'डे' बना दिया

हर दिन है जिसका, उसको अब  'डे' में सीमित किया
तोड़ कर धागा एकता का, 'डे' से गठबंधन कर लिया

'दिवस' याद किसको 'प्रतिबिंब', 'डे' से जो दोस्ती हुई
गरिमा भावो व् रिश्तो की अब बनकर 'डे' झुलस रही

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

'आप' की मेहरबानियाँ





अन्ना का लेकर समर्थन, आन्दोलन का फिर श्रीगणेश किया
भ्रष्टाचार जनलोकपाल था मुद्दा, जिसमे जनता का साथ पाया
देख उमड़ी भीड़,भावुक जनता से खेलने का फिर ख्याल आया
दिखा ठेंगा अन्ना को, सत्ता पाने का सुन्दर हमने अवसर पाया

चाल किसी की व् सोच किसी की, लेकिन रणनीति अपनी बनाई
आन्दोलन व्  धरना खूब किया, सोचा अब तो सत्ता की चाबी पाई
कोसा जिसे दिन रात  उसका ही सहयोग पा दिल्ली की सत्ता पाई
किए खोखले वादे जनता से, कैसे बचे इसकी हमने जुगत जुडाई

कांग्रेस ने गरीबो के भावो से खेला, हमने उस नफ्ज को पकड़ लिया
देखी जिस में राष्ट्रहित की सोच, उस रथ को दिल्ली में अब रोक लिया
देश को युग पुरुष न मिलजाए, इसलिए लोकसभा लड़ने का सोच लिया
दिल्ली में रणनीति अपने पर भारी, इसलिए धरना का हमने सोच लिया

गुमराह किया जनता को वादों से, कांग्रेस भाजपा को सत्ता पाने से रोक दिया
वादों के लिए जनता देख रही, लेकिन हमने देश पर राज का सपना देख लिया
कर नही सकते, हो नहीं सकते पूरे ये वायदे, यह हमने  कुछ दिन में समझ लिया
बिजली पानी का लोलीपोप थमा लोगो को, कांग्रेस भाजपा को हमने कोस दिया

मैं अराजक तत्व हूँ अब एलान किया,  देश जाए भाड में मंत्रियो का बचाव किया
गणतंत्र दिवस का बना कर मजाक, तोड़ कर क़ानून जनता को परेशान किया
घमंड, जिद्द और अड़ियलपन को अपना, अराजकता का रास्ता हमने दिखा दिया
जनता को भड़काना अब हमारा काम, विद्रोह आदत अब तो  'आप' ने दिखा दिया


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 1 जनवरी 2014

नव वर्ष मंगलमय हो !


२०१४ मंगलमय हो लेकिन यह भी ध्यान रहे !!!


ग्रेगोरियन कैलेंडर का आ गया नया साल
हर बार की तरह होगा आयोजन बेमिसाल
खुशियाँ  मना, शुभकामनाएं देते है हर बार
नए साल का उत्साह देखते ही बनता है यार

भूले हम, विक्रम सवंत है हमारा नया साल
संस्कृति और परम्पराओ का हुआ बुरा हाल
पाश्चात्य संस्कृति अपना, आधुनिक कहलाते
संस्कारो का कर तिरस्कार, भारतीय कहलाते

हर धर्म का मान कर, खुद से न हम खुद दूर करे
अच्छाई हर मार्ग की अपना, खुद को हम मजबूत करे
अपवादों से लड़, अपनी परम्पराओ का सम्मान करे
माडर्न दिखने हेतू, अपनी संस्कृति का न अपमान करे

आने वाल नव वर्ष शुभ हो, सुख का सब रस पान करे
नव विक्रम सवंत के दिन भी, सब मिल आयोजन करे
नई सोच के संग, संस्कृति संस्कारो का उल्लेख करे
मैं भारतीय ये मेरी पहचान, आओ खुद पर हम गर्व करे

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

ये दुनियां ....




अँधेरे बहुत है 
उजाले कम है 
यहाँ 
थोड़ी खुशियाँ है
जुड़े कितने गम है
कितने बेबस हम है

वक्त की कसौटी
मांग रही हौसला
लेकिन
अंग अंग बिखरा सा
तन मन बोझिल सा
रोम रोम सिसकता सा

कांटो की सेज सजी
पल पल चुभता है
अब
फूल एक कोने में
खड़ा मुस्कराता है
ज़ख्म हरा करता है

मेरे अस्तित्व को
रोज रोज ठेस लगती है
दुनिया
मंद मंद मुस्काती है
तमाशा देखती जाती है
बहती गंगा में हाथ धो जाती है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 20 नवंबर 2013

जलता कौन नही है




कोई गम की आग में
कोई कर्म की कसौटी पर
कोई इर्ष्या की तपन में
कोई शीर्ष की देहलीज पर
कोई प्रेम अगन में
कोई अहंकार की गरमी पर
कोई दुशमनी की आँच में
कोई भ्रम के धुएं पर
कोई क्रोध की ज्वाला में
कोई अपनों की बेवफाई पर
कोई वक्त की आँच से
कोई दुनिया से रुखसत होने पर

लौ इस दिए की
शायद कुछ कह रही है
जलना है तो ऐसे 'प्रतिबिंब'
खुद जल रोशन दुनिया करो


-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

रविवार, 17 नवंबर 2013

आईना - ए - जिंदगी





अमीर गरीब की बढ़ती खाई
सियासत की ये चाल भाई
स्वार्थ ने है पैठ बढाई
इंसानियत की देते सब दुहाई

खुशी कही पलके बिछाए
गम कही है डेरा जमाए
कर्म धर्म का जाल फैलाए
जिंदगी आइना दिखाती जाए

दर्द झेल रहा कोई
खेल समझ रहा कोई
किस्मत कहे 'प्रतिबिंब' कोई
बुरा वक्त समझ रहा कोई

शनिवार, 16 नवंबर 2013

चल साईं तेरे दरबार चले




तेरा प्यार तेरा दुलार मिले 
देख रूप तेरा सुकून मिले 
कर दर्शन आशीर्वाद मिले 
चल साईं तेरे दरबार चले 

तेरी भक्ति का प्रसाद मिले 
तेरी शक्ति का आभास मिले 
तेरी दृष्टी का अहसास मिले 
चल साईं तेरे दरबार चले 

शिरडी में तेरा अंश मिले 
हर छोर में तेरे भक्त मिले 
तेरी श्रद्धा का चमत्कार मिले 
चल साईं तेरे दरबार चले 

हर अनुयायी को तेरा प्रेम मिले 
भक्तो को उनके भगवान मिले 
'प्रतिबिंब' को भी तेरा साथ मिले 
चल साईं तेरे दरबार चले

रविवार, 3 नवंबर 2013

मेरी शुभकामना इस नाइट



चहुँ ओर दिवाली की चमकेगी आज 'लाइट'
आप सब मित्रो का भविष्य हो बहुत 'ब्राइट'
आपके गमो की सारी हवा हो जाए 'टाइट'
प्रेम संदेश फैलाए, मित्रो संग न हो 'फाइट'

हो गई सब जगह रोशनियों भरी 'साइट'
भक्ति रस का माहौल होगा सारी 'नाइट'
स्वार्थ हावी न हो 'प्रतिबिंब', कदम बढे 'राइट'
खुशियों की भर कर आपके घर आए 'फलाइट'

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

पन्ना मोहब्बत का




खोल दिल की किताब
बांच लेना बोल मोहब्बत के
कब तक पन्ने पलटते रहोगे
निकल न जाए मौसम प्यार के

इस पन्ने को पढ़ कर
प्रेम का दिया दिल में जला लेना
किताब का मोल न लगाना
बस उभरे भावो को समेट लेना

आँखों में पनप दिल में उतरता है
दिल दिमाग संग सफ़र करने लगता है
सोच रुक जाती है उस हम सफ़र तक
सपनों को जीने का  फिर दिल करता है

प्यार में देना ही मोहब्बत है
प्यार को पाना नसीब की बात है
'प्रतिबिंब' जीते है लोग रह कर जुदा
प्यार करने वालो के दिल में बसता खुदा

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

विजय दशमी


[नवमी और विजय दशमी की सभी मित्रो को बधाई एवं शुभकामनायें ]


खुशी और सफलता की सदा लगी रहे बौछार 
चलो मनाये मिलकर विजय दशमी का त्यौहार 
असत्य पर सत्य का, करते रहे हम सदा प्रहार 
अहंकार का छोड़ कर पथ, बुराई का करे संहार 

आओ रीति नही कुरीतियों को अपनी बदल डाले 
आओ संस्कृति और संस्कार की फिर से नीव डाले 
अधर्म का छोड़ कर साथ, धर्म हम अपना समझ ले
कर्म को मान कर पैमाना, भाग्य हम अपना बदल ले  

अन्दर जितने है रावण, आओ उनका हम त्याग करे 
समाज के हर वर्ग को दे सम्मान, प्रेम का संचार करे 
बन कर खुद ही अच्छाई का प्रतीक, राम का मान करे
प्रकृति से निभा दोस्ती, पर्यावरण सरंक्षण का प्रण करे 


-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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