
मन बहुत उतावला होता है। इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है। चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी। आप भी मेरी इस कशमकश के साथी बनिये, साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया,विचार और राय के साथ्। तेरे मन मे आज क्या है लिख दे "चिन्तन मेरे मन का" के पटल पर यार, हर पल तेरी कशिश का फ़साना हो या फ़िर तेरी यादो का सफ़र मेरे यार।
शनिवार, 22 अगस्त 2009
दो दिरहाम और....

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
सुनो वतन के रखवालो

- सुनो वतन के रखवालो -
हे माटी के मतवालो, गीत हिंद के गा लो,
हर धर्म का है मान यहां, प्रेम जहां की भाषा है,
मां यही है,शक्ति यही है, सुनो वतन के रखवालो
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
इस माटी मे हम जन्मे हैं, इस माटी से प्यार करो,
प्यार हमारी शक्ति है, इसी में छुपी देश भक्ति है,
तिरंगे ध्वज की गरिमा को, आंच कभी ना आने देंगे।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
आजादी कही छिन ना जाये, भारत को हमें बचाना है
वतन पर मरने वालो की, हमे यही तो दीक्षा है,
उठो स्वयं को तैयार करो, माटी का कर्ज चुकाना है,
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
भारत में रहनेवाला , हर एक इंसा हिन्दुस्तानी है,
धर्म कहीं लुटने ना पाये, करनी इसकी निगरानी है,
मां की लाज बचानी है, यही एक हमारा नारा हो।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
सब युवाओ के कंधो पर, बागडोर है भारत की,
अब घडी है परीक्षा की, इसके लिये हर पल तैयार रहो,
गर्व है तुम पर भारत मां को, उसका पूरा स्म्मान करो।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
यह देव्य भूमि है, यह पुण्य भूमि है, इस पर कितने अवतार हुये,
हम स्वयं अंश है इस भूमि के, फिर क्यो कोई अपमान सहे,
दे देंगे जीवन अपना भी, लेकिन मां को कुछ ना होने देगे।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
आज वचन ले हम सब, इसकी रक्षा करने का,
मर जायेंगे, मिट जायेंगे, सेवा मे अपने वतन की,
धर्म यही है कर्म यही है, हम तिरंगे के मतवालो का।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, आबू धाबी, य़ू ए ई
शनिवार, 8 अगस्त 2009
आ गई अब बरसात की बारी

प्रतीक्षा थी तेरी वर्षा रानी,
बहुत की तूने आनाकानी।
मोरो ने नाच कर दिखाया,
हमें वर्षा का संदेश सुनाया।
चारो ओर छा गई समां निराली,
घटा है छाई काली – काली।
चिडियों ने पंख फडफ़डाये,
बादल है अब गडगडाये।
जब आई बरखा रानी,
चारो ओर फैल गया पानी।
भर गये सब नदी तालाब,
चारो ओर खिले कमल गुलाब।
कोयल ने कू कू कर,
मन को सांतवना दी गाकर।
हरी भरी हुई है डालिया
पक्षी करने लगे उनसे अठखेलिया।
हरियाली की यों आ गई बहार है,
खुश हुये सब नर नार है।
शुक्रवार, 31 जुलाई 2009
दूर जाना ना..

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009
सोमवार, 20 जुलाई 2009
कौन है रचनाकर (मेरी पहली रचना मेरे सब्से पहले ब्लाग पर)

गुरुवार, 16 जुलाई 2009
मेरा वतन
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मंगलवार, 14 जुलाई 2009
मुश्किल है अपने से दूर करना

आसान है तुमको गले लगाना
मुश्किल है अपने से दूर करना
आसान है प्यार का इजहार करना
मुश्किल है तुम बिन इंतज़ार करना
आसान है तुम से नज़रे मिलाना
मुश्किल है तुम से नज़रे चुराना
आसान है तुमसे प्यारी बाते करना
मुश्किल है तुम से रुठ कर बैठना
आसान है तुम से दोस्ती करना
मुश्किल है तुम से बेवफाई करना
आसान है तुम पर अहसान जताना
मुश्किल है तुम से अहसास छुपाना
आसान है तुम रुठो तो मनाना
मुश्किल है तुम से फासले बनाना
आसान है तुमको नज़रो में बसाना
मुश्किल है अपने से दूर करना
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
(यह भी एक पुरानी रचना है)
मंगलवार, 7 जुलाई 2009
तुमसे बिछड़ा तो ऐसा लगा

रेगिस्तान सा आभास लगा
होश अपने खोने लगा
जोश मेरा हिलने लगा
रेत का असहाय टीला
चारो ओर फ़िर भी गी्ला
रेत के बिखरते कण
दर्द के बिलखते क्षण
यादों का बहता सैलाब
फ़िर भी ना मिलते जबाब
पल-पल उखड़ती सांस
सहारा ढूँढती रही आस
इस मरुस्थल में जाना
प्यार का अपना फंसाना
तुमसे दूरी का अहसास
और पास होने का आभास