मन बहुत उतावला होता है। इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है। चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी। आप भी मेरी इस कशमकश के साथी बनिये, साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया,विचार और राय के साथ्। तेरे मन मे आज क्या है लिख दे "चिन्तन मेरे मन का" के पटल पर यार, हर पल तेरी कशिश का फ़साना हो या फ़िर तेरी यादो का सफ़र मेरे यार।
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
गुरुवार, 22 सितंबर 2011
नई गरीबी रेखा .......
नई गरीबी रेखा .......
गरीब अमीर का खेल है आकर देखे हम करीब
सत्ताधारी कहते हैं,अब न बचा कोई यहाँ गरीब
बड़ी योजनायेँ चली तब जाकर गरीब हुआ अमीर
गरीबी खतम हो जाएगी,जब बचेगा न कोई गरीब
देखा रहा खुली आँखो से मेरे भारत का विकास
पर ग़रीबों का तो हर मोड़ पर उड़ा रहे है उपहास
गावों मे तो बने अमीर जिसे मिले रुपये छब्बीस
शहर का अमीर भूखा नही जो मिले रुपये बत्तीस
मेरा भारत महान देखो मित्रो कितना हुआ है विकास
अमीरी गरीबी की रेखा देखो लिख रही नया इतिहास
मेरे शहर मे रोटी,कपड़ा और मकान की औसत रुपये बत्तीस
मेरे गावों में जीने की भी हो गई, अब औसत रुपये छब्बीस
और अंत मे ....
सुंदर है वो जिसके मुँह है दाँत बत्तीस
अमीर है जिसकी जेब मे रुपये बत्तीस
गरीब की किसी को न दिखती आँत 'प्रतिबिम्ब'
गरीब के पास तो दाँत भी न बचे अब बत्तीस
- - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
मैं आंतक हूँ
मैं आंतक हूँ
मेरा नाम सुना होगा
मैं 'आंतक' कहलाता हूँ
देखा होगा तुमने लेकिन
मेरा कोई चेहरा नही है
मैं भय लोगो में फैलाता हूँ
मुझे खून से बहुत प्यार है
मैं तो लाशें तैयार करता हूँ
मैं फिर लाशों पर चलता हूँ
देशद्रोहियों का असली हथियार हूँ
मानवता से मेरा कोई सरोकार नही
रोते बिलखते चेहरे आकर्षित करते है
बेखौफ हूँ क्योंकि
आपके बीच ही निरंतर पल रहा हूँ
आप से ही मुझे सहारा मिलता है
आपकी खामोशी मेरा मनोबल बढ़ाती है
आपके डर से ही मेरा जोश बढ़ता है
आप का गुस्सा केवल दो दिन का है
आप की सहनभूति केवल दो दिन की है
आपके आँसू भी तो केवल दो दिन के है
आप के सारे खुफिया व पुलिस तंत्र ढीले है
जो हादसो पर जागते हैं बाकी वक्त सोते हो
आपकी न्याय प्रक्रिया भी मुझे हौसला देती है
मानवाधिकार भी शायद मेरे लिए ही बना है
राजनीति पर तो मैंने बस पकड़ मजबूत की है
आपकी संवेदना भी तो अपनों तक सीमित है
चंद रोज के बाद
मैं फिर खड़ा होता हूँ आपके ही सामने
मैं फिर चुनौती देता हूँ आपके ही सामने
मैं फिर आपकी बहस का हिस्सा बन जाता हूँ
मैं फिर आपको उसी उधेड़ - बुन मे पाता हूँ
मुझसे छुटकारा चाहते हो तो
अपनी सोच को आज से ही बदल डालो
कानून से मुझ पर तुम सख्ती डलवाओ
पुलिस व खुफिया तंत्र को सशक्त बनाओ
हादसो पर राजनीति को तुम दूर हटाओ
जागरूक नागरिक की भूमिका तुम निभाओ
सवेंदनशीलता छोड़ अब निर्भय बन जाओ
धर्म को इससे न जोड़ो और एक हो जाओ
चौकस रह अपनी सुरक्षा का जिम्मा उठाओ
वरना मैं तो आतंक हूँ फिर खड़ा हो जाऊंगा
शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
चाल .......
मैं चला,
तुम चले,
अपनी अपनी चाल।
फिर भी खड़े है
आज भी वही सवाल
मौन क्यों है आत्मा?
दूर क्यों है परमात्मा?
खोई क्यों है इंसानियत?
झुलसती क्यों है मानवता?
चेतना अब केवल झुंझलाती है
अन्याय अब केवल आह भरती है
मुस्कराहट अब केवल छलती है
सच्चाई अब केवल दम तोड़ती है
झूठ और अहंकार मिल बैठे है
स्वार्थ और अरमान मिल बैठे है
दोस्त और दुश्मन मिल बैठे है
प्यार और नफरत मिल बैठे है
एक तेरी चाल और एक मेरी चाल
बस नही कोई समझे वक्त की चाल
फिज़ाओ ने बदली हवाओं की चाल
इन सबके आगे बेबस है हमारी चाल
आओ मिल कर अब हम चले चाल
वक्त से लड़ने का यूं हम करे कमाल
एक जुट होकर रखे अब नई मिशाल
खुद का नहीं देश हित का है सवाल
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
रविवार, 28 अगस्त 2011
नई सुबह
आज
एक नई सुबह का आगाज हुआ
वातावरण तब अन्नामय हुआ
एक साकार संदेश फिर
आसमां पर यूँ उभर आया है
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना
आसमान पर
आज तिरंगा फिर लहराया
जन जन ने तिरंगा ले हाथो में
भारत मे आज़ादी का जश्न पुन: मनाया
अब जनता ने एक मंत्र है पाया
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना
शायद ये
शुरुआत हुई है नई क्रांति की
ये लड़ाई पहचान बनी है शांति की
भ्रष्टाचार के दानव को मिटाना है
बस याद रखना होगा इतना अब
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना
ये तारीख
गवाह बनी है असली लोकतन्त्र की
जनता ने बदली है आज सूरत इसकी
वर्षों मे देखेंगे शायद नतीजा इसका
अंबर और धरती पर गूंज उठा है
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना
अब
जीत को विजय मे बदलना होगा
वक्त के साथ हमे बदलना होगा
अन्ना का संदेश रोज गुंगुनाना होगा
अन्ना बन खुद को जीना होगा
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
हर बार ..... इस बार
हर बार
वादे पर वादे करते हो
फिर वादो से मुकरते हो
वक्त वक्त पर तुमने
जनता को ही
निशाना बनाया है
हर बार
वोट पर वोट मांगते हो
फिर हम पर
चोट पर चोट करते हो
तेरे ऐलान पर
करें भरोसा किस दिल से
इस दिल मे घाव गहरे है
हर बार
अपनी ही सुनाते हो
संसद पहुंचाने की
तुम भीख मांगते हो
सांसद बनने पर
कब हमारी सुनते हो
इस बार
हमारी सुन लो
भ्रष्टाचार से हम त्रस्त है
आप अहम से ग्रस्त हैं
सशक्त लोकपाल लेकर आओ
वरना संसद से बाहर जाओ
इस बार
संसद की मर्यादा का सवाल नही
जनता की मांग यूं ठुकराओ नही
अपने दामन को झुठलाओ नही
नाजुक वक्त से तुम मुँह मोड़ो नही
देखो जनता तुमसे क्या चाहती है
इस बार
तिरंगा हाथो मे ले
देखो जनता आती है
अपना संदेश सुनाती है
जनता अलख जगाती है
जागो वरना जनता आती है
इस बार
अहिंसा हमारा नारा है
यही अन्ना का इशारा है
धैर्य जनता ना खो जाएँ कहीं
इसलिए कदम बढ़ाओ सही
जागो वरना जनता आती है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
सुनो !!! चलो !!! आओ !!!
सुनो !!!
आज़ादी की हमने
देखी और सुनी लड़ाई है
शांति और बलिदान से
पाई हमने पहले भी स्वंत्रता है
आज फिर हम गुलाम बने है
भ्रष्टाचार की हमने डाली बेड़िया है
इससे मुक्ति दिलाने को
देखो आया अब दूसरा गांधी है
भ्रष्टाचार !!!
मेरे अंदर भी है
तेरे अंदर भी है
लेकिन आज
स्वयं से लड़ने को
हमें अब तैयार होना है
अन्ना ने मुझे जगाया है
अब मुझे देश को जगाना है
चलो!!!
एक कदम तुम बढ़ाओ
एक कदम मैं भी बढ़ाऊँ
अन्ना के बढ़े कदम संग
हम अपने कदम मिलायेँ
भ्रष्टाचार के दानव को
अब अपनी राह से हटायेँ
युवाओं ने अब आंखे खोली है
अन्ना की बंदूक की ये गोली है
नई स्वंत्रता की ये सजी डोली है
यही असली लोकतंत्र की बोली है
आओ!!!
64 सालो से जिसे बढ़ाया
अब इस पर विराम लगायें
मूक था देशवासी अब तक
अब आवाज़ इसे अपनी बनायें
सो रहे हैं नेता जो राजा बनकर
उन्हे अपनी पहचान हम बतायें
साक्षी होगा इतिहास भी
बदलाव देखा है और अब दिखाना है
आओ !!!
इतिहास के पन्नो पर
नाम अपना यूँ लिखवां दें
जल उठी है जो लौ
उसे अब मशाल बना दें
थाम कर हाथ अहिंसा का
राह को अब रोशन कर दें
इस यज्ञ मे आहुति देकर
आओ भ्रष्टाचार को अब मुक्ति दें
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
शनिवार, 20 अगस्त 2011
भ्रष्टाचार - जनता - अन्ना
[भ्रष्टाचार - जनता - अन्ना ]
मूल भूत अधिकारो का हनन एक अपराध है
सवेंधानिक अधिकारो का हनन गैर कानूनी है
रोटी, कपड़ा और मकान, ये हैं जीवन के आधार
यदि न हो पूर्ण तो, फैलता है जीवन मे भ्रष्टाचार
व्यवसाय से जुड़ गये है जो आज हमारे सारे तंत्र
खतरे मे है आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र
व्यवस्था में व्यवसाय का हो गया है यहाँ जो मेल
इसलिए देखो भ्रष्टाचार का नित चलता हैं यहाँ खेल
लोग राजनीति मे आते है धन को खूब लुटा कर
बनकर ये नेता लूटते है खूब जेब भर - भर कर
नेता, अफसर व कर्मचारी दलाली ले खूब धन जोड़ते है
रिश्वत ले सब अपनी खातिर सभी नियमो को तोड़ते है
काला - धन भी भ्रष्टाचार का ही एक प्रमुख अंग है
इन दोनों मुद्दो पर ही हिंदुस्तान की जनता संग है
लोकपाल बिल नेताओ और नौकरशाहों को बस बचाता है
जनलोकपाल बिल नीचे से ऊपर तक सबकी खबर लेता है
अब तक जनता घुट रही थी इस भ्रष्टाचार से अपने मे
अन्ना ने अब राह दिखाई युवाओ को इससे निपटने मे
भ्रष्टाचार के विरोध मे चली अब जनता मे एक आंधी है
भारत के युवाओ ने देखा अन्ना में आज दूसरा गांधी है
भ्रमित जनता के भीतर एक विश्वास जगाया अन्ना ने है
अहिंसा की ले मशाल जाग उठा जन - जन में अन्ना है
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
शुक्रवार, 12 अगस्त 2011
रक्षा बंधन
~ रक्षा बंधन ~
देव - दानवो के युद्ध मे जब दानव हावी थे
इंद्राणी ने इन्द्र को तब पवित्र धागा बांधा था
इस धागे की शक्ति से इन्द्र ने विजय पायी थी
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
विष्णु ने जब राजा बलि से संसार मांग लिया था
बलि की भक्ति ने विष्णु को तब अपने संग रोका था
लक्ष्मी ने बांध इसे बलि को विष्णु को तब पाया था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
शिशुपाल का वध जब कृष्ण ने किया था
कृष्ण की तर्जनी से बहता खून का रेला था
द्रौपदी ने चीर बांध कृष्ण के खून को रोका था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
रानी कर्णवती ने हुमायूँ को यह राखी भेजी थी
हुमायूँ ने फिर बहादुरशाह के संग की लड़ाई थी
सिकंदर की भार्या ने भी पुरू को राखी भेजी थी
इस धागे ने ही तब सिकंदर की जान बचाई थी
केवल बहन भाई के रिश्ते का धोतक नही है
केवल लेन देन का रिश्ता इसकी सोच नही है
एक दूजे की रक्षा करने का यह मज़बूत धागा है
स्नेह और समर्पण का यह धागा तो बस गवाह है
ब्राह्मण इसे यजमान को बांध आपति से बचाता है
सीमा पर सैनिकों का भी ये धागा मनोबल बढ़ाता है
मित्रो मे भी यह धागा स्नेह और विश्वास जगाता है
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह शुभ पल आता है
सभी पाठको को रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामनायें!!!
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
गुरुवार, 4 अगस्त 2011
मन की परतें.....
मन की परतें .......
मन बता तेरी कितनी परते है
जिसमे अहसास अपनें भरते है
तुझसे ही अपनी बात करते है
फिर भी कुछ कहने से डरते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
मेरे संग ही तू हँसता और रोता है
मेरे संग ही तू जागता और सोता है
मेरे संग ही तू भागता और रुकता है
मेरे संग ही तू सोचता और बोलता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
मन के हर कोने में इच्छा बसती है
इसमे ही तो मेरी खुशियाँ पलती है
मेरी हार तुझको भी दुखी करती है
इसमे ही तो मेरी निराशा जलती है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
मेरा गुस्सा तुझमें आक्रोश भरता है
मेरा प्यार को तू ही तो समझता है
मेरे दर्द से तू भी व्यथित हो जाता है
मेरे ही सवालो से फिर घिर जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
इसी में डर रिश्तो का समाये रहता है
इसी में रिश्तों को तू बनाए रखता है
दोस्ती की पहचान कभी करा देता है
कभी उन्ही को अंजान तू बना देता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
विश्वास मुझमे जगा तू हौसला देता है
कभी अविश्वास को बीच में ले आता है
वक्त से लड़कर तू मुझे स्थिरता देता है
पल पल मे फिर क्यों तू बदल जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
पलते है सपने इसमे मेरे अरमानों के
खुलते है पट इसमे मेरी भावनाओ के
जलते है चिराग इसमे मेरी आशाओ के
फलते है वृक्ष इसमे प्रेम और दुआओं के
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
जीवन - संगीत के तुझमें ही छुपे राग है
मिलन - विरह के तुझमे ही बजते साज है
उमर और वक्त की रहती तुझमें छाप है
भक्ति और शक्ति की बसती तुझमें जान है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
मन और मैं यूं तो साथ - साथ चलते हैं
पर कभी आपस मेँ ही लड़ते - झगड़ते है
दुविधा और सुविधा को बखूबी पहचानते है
कभी जानकार भी अंजान हम बन जाते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….
समाज और देश की चिंता मुझको सताती है
प्रेम और दुश्मनी का भाव मुझमे जगाती है
मन तुझमे ही तो सोच बनती - बिगड़ती है
मन तुझमे ही तो मेरी सारी दुनिया बसती है
मन मुझे पता है तेरी कितनी परतें है ………
सदस्यता लें
संदेश (Atom)