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रविवार, 3 नवंबर 2013

मेरी शुभकामना इस नाइट



चहुँ ओर दिवाली की चमकेगी आज 'लाइट'
आप सब मित्रो का भविष्य हो बहुत 'ब्राइट'
आपके गमो की सारी हवा हो जाए 'टाइट'
प्रेम संदेश फैलाए, मित्रो संग न हो 'फाइट'

हो गई सब जगह रोशनियों भरी 'साइट'
भक्ति रस का माहौल होगा सारी 'नाइट'
स्वार्थ हावी न हो 'प्रतिबिंब', कदम बढे 'राइट'
खुशियों की भर कर आपके घर आए 'फलाइट'

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

पन्ना मोहब्बत का




खोल दिल की किताब
बांच लेना बोल मोहब्बत के
कब तक पन्ने पलटते रहोगे
निकल न जाए मौसम प्यार के

इस पन्ने को पढ़ कर
प्रेम का दिया दिल में जला लेना
किताब का मोल न लगाना
बस उभरे भावो को समेट लेना

आँखों में पनप दिल में उतरता है
दिल दिमाग संग सफ़र करने लगता है
सोच रुक जाती है उस हम सफ़र तक
सपनों को जीने का  फिर दिल करता है

प्यार में देना ही मोहब्बत है
प्यार को पाना नसीब की बात है
'प्रतिबिंब' जीते है लोग रह कर जुदा
प्यार करने वालो के दिल में बसता खुदा

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

विजय दशमी


[नवमी और विजय दशमी की सभी मित्रो को बधाई एवं शुभकामनायें ]


खुशी और सफलता की सदा लगी रहे बौछार 
चलो मनाये मिलकर विजय दशमी का त्यौहार 
असत्य पर सत्य का, करते रहे हम सदा प्रहार 
अहंकार का छोड़ कर पथ, बुराई का करे संहार 

आओ रीति नही कुरीतियों को अपनी बदल डाले 
आओ संस्कृति और संस्कार की फिर से नीव डाले 
अधर्म का छोड़ कर साथ, धर्म हम अपना समझ ले
कर्म को मान कर पैमाना, भाग्य हम अपना बदल ले  

अन्दर जितने है रावण, आओ उनका हम त्याग करे 
समाज के हर वर्ग को दे सम्मान, प्रेम का संचार करे 
बन कर खुद ही अच्छाई का प्रतीक, राम का मान करे
प्रकृति से निभा दोस्ती, पर्यावरण सरंक्षण का प्रण करे 


-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

मेरा प्रेम


अनदेखा कैसे कर दूं
प्रेम अपना कैसे छिपाऊँ
तुम्हे बचपन से देखा है
तुम्हे ही मन में सोचा है
तुम मधुर, सुन्दर दिखती हो
हाँ हर रूप में अपनी लगती हो
तुम मेरा गौरव हो
तुम मेरी पहचान हो

मेरे जीवन पर
तुम्हारा ही प्रभाव है
हाँ अन्य को देखा
पढ़ा सुना जाना पहचाना
लेकिन तुम से प्रेम था
तुम से प्रेम है, और
तुम से प्रेम बना रहेगा

मैं चाहता हूँ
बाकी भी तुमसे यूं प्रेम करे
मुझसे भी ज्यादा करे
तुम इस प्रेम की हक़दार हो
हर भारतीय तुम से प्रेम करे
तुम्हे मान दे सम्मान दे

तुझे जिसने भी
अपना बनाया
अपने लेखो में
अपनी कविताओ में
अपने उपन्यासों में
अपने निबंधो में
अपने शोध में
वे सभी आज
तुझसे ही पहचाने जाते है
हाँ हम उनका सम्मानकरते है
चाहता हूँ सभी सम्मान करे
उन्हें याद रखे और
तुझे अपना कर प्रेम करे  

हिन्दी!!!
हाँ मैं तुमसे
प्रेम करता हूँ
और करता रहूँगा
तेरे सम्मान के लिए
अपना योगदान देता रहूँगा ...

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

फ़ूड [वोट] सिक्यूरिटी बिल



आखिर लोक सभा में
वोट सिक्यूरिटी बिल पास हो गया
सपना सत्ता में वापिस आने का
आखिर एक कदम आगे बढ़ ही गया

ठोस कुछ किया नही
घोटालो के मामले बने है सत्ता का रोड़ा
एक मात्र सहारा नाम गरीब का
वोट सिक्यूरिटी बिल से सकूं मिला थोडा

गरीब देख हक्का बक्का है
६५ वर्षो से गरीबी खेल का बना एक्का है
गरीब को मिटा आंकड़ो से खेल
इतने सालो में बस वोट को किया पक्का है

आंकड़ो का मनभावन खेल
खेलती और पीठ थपथपाती अपनी सरकार
बढ़ती महंगाई और गिरता रुपया
ले नाम गरीब का, जनता का करते तिरस्कार

अपना हित देखती सरकार
करने इसे पूरा संसद को बनाती हथियार
गरीब और अल्पसंख्यंक है बस मुद्दा
ये दोनों ही है उसके अपने वोट बैंक आधार

गरीब और अल्पसंख्यंक
हालात आज भी नही बदले है, जहाँ थे वही खड़े है
एक को लोलीपोप, दूसरे को आरक्षण
इसके सिवाय दिया क्या, लोग एक दूजे से लडे है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 17 अगस्त 2013

तेरी थाली मेरी थाली




हो तेरी थाली या मेरी थाली
अब प्याज बिन लगती गाली
रोटी प्याज की थी हम जोली
किसने इस पर बुरी नज़र डाली
बिन प्याज हुई अब गरीब की थाली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

दोस्त या दुश्मन, बीबी हो या साली
सबने है अब प्याज से दूरी बना ली
प्याज बिन है अब ये सब्जी की थैली
महंगाई पर सत्ता ने चुप्पी साध ली
आम आदमी की जेब  हो रही खाली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

गरीबी की नई परिभाषा बना ली
गरीब और अमीर की खाई बढ़ा ली
देकर चांवल आटा सब्जी छीन ली
देकर प्रलोभन अंतरात्मा खरीद ली
गरीब को गरीब करने की ठान ली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

जिन्दगी कभी यूं भी ....




तूफ़ान से की थी दोस्ती, वो रोशनी बुझा गया
खौला था जो खून, अरमान सारे झुलसा गया
चला जब अंगारों पर, सपनो को जलाता गया
फूलो की ख्वाइश में, कांटो से छलनी हो गया

माना था जिसे दोस्त,  वो दुश्मनी निभा गया
समझा जिसे अपना,  वो आज पराया हो गया
वफ़ा की थी जिससे उम्मीद, वो बेवफा हो गया
दस्तूर दुनिया का, जिसे चाहा वो दूर हो गया

किया जुर्म दिलो ने, लम्हो से शिकायत हो गई
माँगा मशविरा अपनों से, बात अपनी आम हो गई
दुश्मन की चाल 'प्रतिबिंब' काम अपना कर गई
धोखा दे गई किस्मत और बदनाम हमें कर गई  

शनिवार, 27 जुलाई 2013

सलाम टेलीग्राम


फेसबुक समूह 'तस्वीर क्या बोले' में लिखे गए भाव 


~सलाम टेलीग्राम~


सेम्यूल मोर्श की सोच ने विश्व को दी थी ये नई सौगात
दूर संचार में हुई क्रांति, जब टेलीग्राम का हुआ अविष्कार
२४ मई १८४४ को पहला टेलीग्राम वासिंगटन से बाल्टीमोर
संक्षिप्त में हर खबर पहुँचाने का फिर देश में हुआ विस्तार

छुट्टी आना हो, नौकरी मिलना हो या फिर हो कोई भी अवसर
टेलीग्राम से ही मिलता था तुरंत ही खुशी गम का हर समाचार
१६३ साल की संस्कृति को अब सदा के लिए लग गया विराम
इतिहास हुए अब मशीन की वो टूक-टूक-ट्रा, तारबाबू और तारघर

नई तकनीक का आना और फिर उसका यूं हमें विदा कहना
समझा गया हमें, जिन्दगी और रिश्तो का भी हाल यही होगा
चला गया उसे जाना था 'प्रतिबिंब', नई सोच को स्थान दे गया
अब म्यूजियम की शान बनेगा, टेलीग्राम तू हमें सदा याद रहेगा

[ https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/ ]

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

चलो जश्न मनाये .....



मैं आज गरीब नही हूँ
किसी को रहम आया
जलेबी ब्रेड मेरे नसीब में आया
आज मैं खुश हूँ
देश की ६५ सालो की गरीबी दूर हुई
गरीब का मूल्य ३० रुपये ठहराया
और गरीबी को आंकड़ो से दूर भगाया

चलो आओ खुशियाँ मनाये
दाल रोटी हम १२ रुपये में खाएं
अरे सरकारी नेताओ
फ़ूड सिक्योरिटी बिल पर क्यों करोडो लगाते?
जब ५ और १२ में खाना मिल जाता
गरीब और अल्पसंख्यंक आज भी वही खड़ा है
तुम्हारे वादों के अहसान तले ज्यों का त्यों दबा पड़ा है

पर अब मजाक करने की भी हद होती है
मार रहे हो हमें दिन प्रतिदिन महंगाई से
जलता है रोज कलेजा
उस पर नमक छिड़क रहे हो
उड़ा लो हमारी तुम खूब खिल्ली
चलो मान ली आपकी दरिया दिली
५ रुपये में मिलेगा भर पेट खाना
लेकिन ५ या १२ रुपये मैं कहाँ से लाऊं ???


-    -  प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 21 जुलाई 2013

हैल्लो जिन्दगी



नमस्कार जिन्दगी !
न जाने तुम कब आगे निकल गई
सुप्रभात, नमस्कार को छोड़ पीछे
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई

अपनाया था अपना समझ
आज तुम पराई हो गई
खेल रही हाथो में उनकी
दौड़ पूर्व से पश्चिम की हो गई

खो दिया अपनी अमानत को
भारतीयता अब 'इन्डियन' हो गई
संस्कार और संस्कृति हमारी
शायद अब कोई भूली कहानी हो गई

सोचा था विरासत अपनी सौंप देंगे
पर ये पीढी खुद में सिमट कर रह गई
देखे थे सपने बहुतेरे पर जागे नही
जब जागे तो उम्मीदे सब स्वाहा हो गई

नमस्कार जिन्दगी !
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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