डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल (१३ दिसंबर,१९०१ - २४ जुलाई,१९४४)
मन बहुत उतावला होता है। इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है। चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी। आप भी मेरी इस कशमकश के साथी बनिये, साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया,विचार और राय के साथ्। तेरे मन मे आज क्या है लिख दे "चिन्तन मेरे मन का" के पटल पर यार, हर पल तेरी कशिश का फ़साना हो या फ़िर तेरी यादो का सफ़र मेरे यार।
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
१३ दिसम्बर याद आये डा. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल (हिन्दी के प्रथम डी लिट)
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
उनकी याद्
क्षितिज की ओर निहारती नज़रे
शांत समुन्दर की मस्त लहरे
बरबस ही उनकी याद दिला जाती है
उनको भूलने की नाकाम कोशिश
फ़िर मन में एक आस जगा जाती है
मन फ़िर मन नहीं रहता
प्रेम में वशीभूत हो जाता है
आसमान की उँचाईया छूने लगता है
प्यार कि खुशबू महकने लगती है
सांसे कुछ तेज चलने लगती है
बंद आँखे प्यार का लम्हा जीने लगती है
होंठ उनके नाम से कंपकपाने लगते है
अहसास फिर से मचलने लगते है
उनकी याद आज भी
अपने करीब ले जाती है.
गुरुवार, 26 नवंबर 2009
26/11 - क्या सीख पाये हम कुछ ?
मुंबई हमले की आज बरसी है. तमाम चैनलो और प्रिंट मीडिया में "अपने सच" की खूब बिक्री हो रही है.सभी किसी न किसी रुप में किसी को दोषी ठहरा रहे है या फ़िर प्रशन खडे कर रहे है. आज भी पाकिस्तान को दोषी और शहीदो को याद कर रहे हैं. यही होता आया है पहले भी और आज भी. सरकार की नाकामायाबी और राज्य की निष्क्रियता पर राजनीति होती आ रही है और होती रहेगी.
सच तो केवल इतना है कि आंतक का डर उसी रुप में बरकरार है. कई दावे सुरक्षा के मध्य नज़र हर घटना के बाद किये जाते है, आयोगो का गठन तो आम बात है. मानव अधिकारो के नाम पर दोषियो के प्रति सख्त कार्वाही करने से हिचकते है या कहे वोट बैंक की रजनीति हावी रहती है. केवल लोगो को गुमराह किया जाता है धर्म, मज़हब या फ़िर अल्पसंखय्को के नाम पर.
आज जरुरत है अपनी सुरक्षा संगठनो को और सशक्त बनाने की, गुप्त्चर विभाग को और जागरुकता बरतने की और आम नागरिक को और चौकस रहने की. इन तीनो को केवल राष्ट्र से जोड कर देखा जाना चाहिये ना कि जाति, धर्म और राजनीति से. भरस्क प्रयास होने चाहिये हर राज्य की ओर से चाहे सरकारे किसी भी राजनीतिक दल की हो या केन्द्र मे किसी की भी सरकार हो.पक्ष या विप़क्ष को राजनितिक फ़ायदे की लालसा को दर किनार कर देश की अखंडता के लिये साथ कदम उठाने की जरुरत है. कानून का पालन सख्ती से और दोषियो की सुन्वाई जल्द से जल्द और कडी सज़ा जिससे आंतक फ़ैलाने वाले इस तरह के कदम उठाने से पहले १०० बार सोचे. उन सभी लोगो को भी जो आंतकियो को शरण देते है उन्हे भी आंतकी समझ कर ही सज़ा देना जरुरी है. सविधान/कानून मे भी संशोधन की जरुरत है जिससे अपराधी इसका फ़ायदा उठा कर बच ना सके. सभी पुलिस महकमो मे शिक्षा और आधुनिकरण को स्थान देना होगा तथा उनकी उपयुक्तता को बढाना होगा. बेरोज़गारी और गरीबी जैसे मुद्दो की ओर भी देखना होगा जिससे युवाओ को सही दिशा मिल सके और उनका ध्यान देश विरोधी गतिविधियो या अपराधो की ओर ना जाये.
सभी कार्यो को अंज़ाम देने के लिये इच्छाशक्ति की अहम जरुरत है. फ़िर देश से बडा क्या है. यदि हम सभी इस भावना से कार्य करे तो आंतक जैसे दानव से छुटकारा पा सकते है.
एक गीत जो १५ अगस्त २००९ को लिखा था उसे पुन: लिख रहा हूं. शहिदो को नमन करते हुये.
- सुनो वतन के रखवालो -
हे माटी के मतवालो, गीत हिंद के गा लो,
हर धर्म का है मान यहां, प्रेम जहां की भाषा है,
मां यही है,शक्ति यही है, सुनो वतन के रखवालो
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
इस माटी मे हम जन्मे हैं, इस माटी से प्यार करो,
प्यार हमारी शक्ति है, इसी में छुपी देश भक्ति है,
तिरंगे ध्वज की गरिमा को, आंच कभी ना आने देंगे।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
आजादी कही छिन ना जाये, भारत को हमें बचाना है
वतन पर मरने वालो की, हमे यही तो दीक्षा है,
उठो स्वयं को तैयार करो, माटी का कर्ज चुकाना है,
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
भारत में रहनेवाला , हर एक इंसा हिन्दुस्तानी है,
धर्म कहीं लुटने ना पाये, करनी इसकी निगरानी है,
मां की लाज बचानी है, यही एक हमारा नारा हो।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
सब युवाओ के कंधो पर, बागडोर है भारत की,
अब घडी है परीक्षा की, इसके लिये हर पल तैयार रहो,
गर्व है तुम पर भारत मां को, उसका पूरा सम्मान करो।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
यह देव्य भूमि है,यह पुण्य भूमि है,इस पर कितने अवतार हुये,
हम स्वयं अंश है इस भूमि के, फिर क्यो कोई अपमान सहे,
दे देंगे जीवन अपना भी, लेकिन मां को कुछ ना होने देगे।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
आज वचन ले हम सब, इसकी रक्षा करने का,
मर जायेंगे, मिट जायेंगे, सेवा मे अपने वतन की,
धर्म यही है कर्म यही है, हम तिरंगे के मतवालो का।
सुनो वतन के रखवालो, गीत हिंद के गा लो।
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, आबू धाबी, य़ू ए ई
सोमवार, 2 नवंबर 2009
चाँद फिर निकला Written By: Kamlesh Chauhan Copyright@ July 9th, 2008
मुहबत का जिक्र हो शायद हाथो की लकीरों मे
याद दिलाता है मुझे एक अनजान राही की
याद दिलाता है उन मुहबत भरी बातो की
टूट कर चाहा इक रात दिल ने एक बेगाने को
कबूल कर लिया था उसकी रस भरी बातो को
वोह पास हो कर भी दूर है मुझ से
दूर होकर भी कितने करीब है दिल के
उनको देखने के लिये ये नैन कितने प्यासे थे
उनको देखने की चाह मे हम दूर तक गए थे
डूब जाते है चश्मे नाज़ मे उनका कहना था
जिंदगी कर दी हमारे नाम उनका ये दावा था
आज चाँद फिर निकला बन ठन कर
चांदनी का नूर छलका हो यु ज़मीं पर
याद आयी नाखुदा आज फिर शब्-ए-गम की
मदभरी,मदहोश,रिश्ता-ए-उल्फ़ते,शबे दराज की
नैनो मे खो गए थे नैन कुछ ऐसे उस रात
छु लिया यूँ करीब हो कर खुल गया हर राज़
२
आज पूरण माशी का चाँद फिर निकला
सवाल करता है आपसे आज दिल मेरा
मेरे चाँद
तोड़ कर खिलोनो की तरह यह दिल
किसके सहारे छोड़ देते हो यह दिल
अगर वायदे निभा नहीं सकते थे तुम
जिंदगी का सफ़र न कर सकते थे तुम
कियों आवाज दी इस मासूम दिल को
कियों कर दस्तक देते हो इस दिल को
मत खेलो इस दिल से मेरे हजूर
मत छीनो मेरी आँखों का नूर
हमारा तो पहला पहला प्यार है
आँखों मे तुम्हारा ही खुमार है
हर रोज तुम्हारा ही इंतजार है
दिन रात दिल रोये जार जार है
या तो हमें सफ़र मे साथ लेलो
या फिर अपनी तरह
हमें भी खुद को भुलाना सीखा दो
जीना सिखा दो मरना सिखा दो
अभी तो ज़िन्दगी एक इल्जाम है
बिन तुम्हारे सुनी दुनिया
हमारा तो संसार ही बेजार है
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रविवार, 1 नवंबर 2009
स्वयं का पहला कदम
सोमवार, 26 अक्तूबर 2009
क्या करना तुम शादी के बाद.
बता रहा हूँ क्या करना तुम शादी के बाद
रात - दिन का नही, जीवन भर का है साथ
इसे निभाना प्रिय मित्रो , तुम शादी के बाद
एक दूसरे को समझना, ना करना तुम शक
इधर उधर झाँकना नही, तुम शादी के बाद
सुख - दुख जीवन का अंग है, इसमे रहना साथ
एक दूसरे का हाथ बटाना, तुम शादी के बाद
एक दूजे की खुशियों का रख्नना तुम ध्यान
हर कदम फूँक - फूँक रखना तुम शादी के बाद
सुन्दर - सुन्दर फूल खिलाना तुम अपने घर आँगन
छोटा परिवार सुखी परिवार, रखना ध्यान तुम शादी के बाद
सोमवार, 19 अक्तूबर 2009
तुम जब भी मेरे पास आये
प्यार की परिभाषा बदलती रही।
जब भी तुमने मुझे छुआ
अहसास हमारे हर पल बदलते रहे।
तुम्हारी आँखों ने जब भी कुछ कहा
सपने मेरी आँखों के बदलते रहे
तुम्हारे दिल ने जब भी मुझे पुकारा
दिल के जज़बात फ़िर तड़पेंगे लगे
रात की खामोशी जब कुछ कहने लगी
हम तुम तब कुछ बहकने से लगे
दूरियां जब कुछ कम होने लगी
प्यार के अंदाज़ फ़िर बदलने लगे।
होंठ जब तुम्हारे कंपकंपाने लगे
जुबां ना जाने मेरी क्यों लड़खड़ाने लगी
सांसे जब तुम्हारी तेज़ चलने लगी
प्यार कि गहराई हर पल बदलती रही।
वक्त और मौसम बस बदलते चले गये
हम और तुम प्यार में बस चलते गये
अहसास फ़िर भी बदलते रहे
प्यार में हम यूं ही निखरते रहे
शनिवार, 17 अक्तूबर 2009
दीपावली की बधाई एवम शुभकामनाये!!
गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009
दिवाली फ़िर से आई - शुभकामनाये
दिलो - दिमाग पर रहती, हर त्यौहार की छाप है
बतलाया गया मुझे चोरी और झूठ तो एक पाप है।
सिखलाया करना बड़ो का आदर, रखना प्रेम और भाई चारा,
देश प्रेम का पाठ पढाया और बुलंद किया देशभक्ति का नारा।
आज दिवाली फ़िर से आई सबके चेहरो पर ख़ुशियाँ लाई,
दोस्तों को देने लगे बधाई, सबके घरों में उमंग ले आई।
भूल गये सब कल की बाते, नई राह फ़िर लगे हैं देखने,
आज फ़िर कल बन जायेगा, सभी भरने लगेंगे घर अपने।
आओ दीपावली का त्यौहार हम आज इस तरह मनाये,
रुठे है सपने जिनके, उनके सपनों को आज़ फ़िर संज़ाये।
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
अपनी धुनों से दीवाना तुमको बनाऊँ
प्यार के खेल में जीत ले हम बाजी
तुम संग नाचूँ, गीत, मिलन के गाऊँ
तुम कहो तो दुनिया से मैं लड़ जाऊँ
धरती क्या अम्बर में तूफान मचाऊँ
सागर की मौजो को गले लगाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
पंछी जैसे साथ तुम्हें ले मैं उड़ जाऊ
नील गगन में प्यार तुम्हें सिखलाऊँ
तराना प्यार का तुमको मैं सुनाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
दिल में अपने मूरत तुम्हारी है बनाई
किया है प्यार तुम्हीं से, ये है सच्चाई
साथ जियेंगे कसम ये है मैंने खाई
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
तो क्या बात होती
हम - तुम एक हो जाते तो क्या बात होती
तेरा दर्द मैं सह पाता तो क्या बात होती
तेरे आंसू मेरी आंख से आते क्या बात होती
तेरा गम मैं समेट पाता तो क्या बात होती
तेरी परछाई मैं बन पाता तो क्या बात होती
मेरी खुशनसीबी तुम्हें मिल जाती तो क्या बात होती
तुम्हारा प्यार मुझे मिल जाता तो क्या बात होती
मेरा सुख-चैन तुम को मिल जाता तो क्या बात होती
मेरी मुस्कराहट तुम को मिल जाती तो क्या बात होती
तेरे दामन में ख़ुशियाँ मैं भर पाता तो क्या बात होती
दुनिया की बुरी नज़र से बचा पाता तो क्या बात होती
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009
फिर भी ना जाने क्यो-(प्रेम का एक रुप ये भी)
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥
प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥
प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥
प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हार है॥
रविवार, 4 अक्तूबर 2009
जिन्दगी का चित्रण
शनिवार, 3 अक्तूबर 2009
ये क्या सिखाया आपने
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
गुदडी का लाल
बुधवार, 30 सितंबर 2009
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल - हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी
हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल),उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने"अंबर" नाम से कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने हिन्दी में शोध की परंपरा और गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे उत्तराखंड की ही नही भारत की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला. उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल)के प्रति भी उनका लगाव था.
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके शोधकार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोयट्री'- अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशनमें किया था) के लिये.
उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फारसी के शब्दो और बोली को भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना. उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं. उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.
निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती है.
· रामानन्द की हिन्दी रचनाये ( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)
· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (स. श्री गोबिंद चातक)
· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का संकलन व सम्पादन)
· सूरदास जीवन सामग्री
· मकरंद (स. डा. भगीरथ मिश्र)
· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)
· 'कणेरीपाव'
· 'गंगाबाई'
· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',
· 'कवि केशवदास'
· 'योग प्रवाह' (स. डा. सम्पूर्णानंद)
उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब भी उनकी पुस्तके प्रकाशित करती है. कबीर,रामानन्द और गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ० पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ०बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.
"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है
" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं,क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी,परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है".
उन्होने बहुत ही कम आयु में इस संसार से विदा ले ली अन्यथा वे हिन्दी में कई और रचनाओ को जन्म देते जो हिन्दी साहित्य को नया आयाम देते. डॉ० संपूर्णानंद ने भी कहा था यदि आयु ने धोखा न दिया होता तो वे और भी गंभीर रचनाओं का सर्जन करते'
उतराखंड सरकार, हिन्दी साहित्य के रहनुमाओ एवम भारत सरकार से आशा है कि वे इनको उचित स्थान दे.
(आप में से यदि कोई डॉ० बड़थ्वाल जी के बारे में जानकारी रखता हो तो जरुर बताये)