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मंगलवार, 13 नवंबर 2012

रास्ते बदल गये : कमलेश चौहान ( गौरी)


रास्ते बदल गये : कमलेश चौहान ( गौरी)

Legal action will be taken if any line, words will be manipulated, exploited from above Poem
 


माना कि ये उस मालिक का दस्तूर है
कुछ पल सब कुछ है
कुछ पल देखो तो कुछ भी नहीं

कल जो दिल के करीब था, आज भी है
अब, सात समुद्र पार है
कल जो अपना था वो आज कहीं नहीं

ओह ! हम बहक गए थे किसी की बातों से
कैसे कटेगी ज़िन्दगी
मत पूछो जिसकी हमें खबर नहीं

चाँद महका था अमावस की रातों के बाद
वो कौनसी थी रात थी
मुझसे मत पूछो अब कुछ याद नहीं

उसने न जाने अनेकों नाम लिख दिए थे
अपने दिल पे
मेरा नाम याद रहे, यह जरूरी तो नहीं

दो रोज़ का हंसना हंसाना, गुनगुनाना
हसीं वादियों में
अब वो सर्द राते परायी है मेरी नहीं

भूली बिसरी यादों, दिल में बसेरा मत करो
वो जो निकला बेवफा
उस दोस्त का नाम दोहराना कोई ज़रूरी तो नहीं

लेखिका - कमलेश चौहान (गौरी)
All rights reserved with " Saat Janam Ke Baad" @ Kamlesh Chauhan(

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आई दीवाली





राम लौट आया है
पिता की आज्ञा का पालन कर
रावण [बुराई] का वध कर
हाँ राम घर लौट आया है

रामायण एक कथा है एक लीला है
कुछ सिखलाने की खातिर
हर रिश्तों का इसमे उपयोग किया
अच्छे बुरे का भेद समझाकर
अच्छे को अपनाओं का संदेश दिया
आज भी अपनी स्वार्थ पूर्ति की खातिर
बुराई को जाने क्यों हमने अपना लिया
कुतर्क साध, भाव को खंडित कर
सिया राम के रिश्तो का अपमान किया
अच्छाई अपना न सके किन्तु
मूल भाव को तोड़, खूब इसका इस्तेमाल किया

आओ फिर दिये जलाए
वातावरण को जगमगाए
हर साल की तरह
इस साल भी आओ दिया जलाए

त्यौहार की खुशियों संग
आओ कुछ अपना ले
प्रेम - माँ और बेटे का
प्रेम - बेटे और पिता का
प्रेम - पति और पत्नी का
प्रेम - भाई और भाई का
प्रेम - भक्त और भगवान का
प्रेम - दोस्त और दोस्त का
धर्म - एक राजा का
कर्म - एक क्षत्रिय का
ज्ञान - एक कथा का
अंत  - एक बुराई का

एक दिया मन मे भी जला लेना
सच,  ईमानदारी और इंसानियत का
स्नेह - आदर और विश्वास का
दान - धर्म और भक्ति - भाव का

आओ मिल कर एक दिया जलाए
अहसास कराये जो 'हम'  होने का
एकता और सर्व - धर्म संभाव का

आओ मिलकर एक और दिया जलाए
धरती से स्नेह और राष्ट्र प्रेम का

~~ शुभं ~~

शनिवार, 22 सितंबर 2012

मैं येसा क्यों हूँ .....







मैं येसा इसलिए हूँ ......
क्योंकि जनता की नही मैडम की सुनता हूँ ..... 
मैं येसा ही हूँ ......

गरीबो को बहलाता हूँ .......
अमीरों को सहलाता हूँ ......
मैं येसा ही हूँ ......

आर्थिक नीति का हिमायती हूँ .....
कहने करने मे बहुत किफ़ायती हूँ .....
मैं येसा ही हूँ ......

मुलायम हो माया की सुनता हूँ .......
विपक्ष को चुप रहकर जलाता हूँ ......
मैं येसा ही हूँ ........

राहुल बाबा की कृपा है गद्दी पर हूँ ....
उनके लिए उतरने को तैयार हूँ ......
मैं येसा ही हूँ .....

जनता की हर नफ़्ज़ समझता हूँ ....
विपक्ष की फूट को खूब भुनाता हूँ ......
मैं येसा ही हूँ .....

कोई आवाज़ उठाए उसे दबाता हूँ .....
अपने कारनामो को दूसरे पर डालता हूँ ...
मैं येसा ही हूँ .....

वैसे सवालो पर बहुत कम बोलता हूँ ......
कभी मन हुआ तो जबाब शायरी मे देता हूँ .....
मैं येसा ही हूँ .....

समस्याओ के लिए जादू की छड़ी नही रखता हूँ ......
आंदोलन करने वालो पर डंडा खूब घुमाता हूँ ........
मैं येसा ही हूँ ......

पैसे पेड़ पर नही उगते ये कहता हूँ .....
अपने लोगो की जेब लेकिन खूब भरता हूँ .....  
मैं येसा ही हूँ ......

चलो अब चुनाव की तैयारी मे हूँ ....
ज़रा आपको देने लोलिपॉप की तैयारी करता हूँ ....
मैं येसा ही हूँ .....

-          बड़थ्वाल 

रविवार, 16 सितंबर 2012

मेरा नाचना - उनका नाचना

[यह रचना १६ जनवरी २०११ को लिखी थी]



मै नाचूं और पेट भरूं, चलाऊँ अपना छोटा/बडा सा परिवार
इसके लिये किसी महफिल की शान बनू या जाऊँ डांस बार

फेक जाते है लोग पैसा हर बार उस पर भी लगाये नज़र सरकार
किसी जलसे में मारु ठुमका तो मीडिया भी पूछती सवाल हज़ार

मेरी महफिल में आ जाये यदि कोई नेता या आये कोई खास
उनकी भी धज्जिया उडाते है और सबको लगता है ये बकवास

सभ्य समाज की बात और है, जमती है महफिल एक शाम के नाम
बदन बिकता है नाचता है किसी अवार्ड के नाम या चेरिटी के नाम

पैसा करोडो मे ले जाते है कभी शीला की जवानी कभी मुन्नी बदनाम के साथ
यंहा जो नेता अभिनेता या आये कोई खास, वो भी बडे हो जाते है उनके साथ 

उनकी अदा और बदन को खूब भुनाते लोग, हमे तवाइफ का नाम दे जाते है वो
डिस्को, रेव पार्टियो में जाकर देखो सभ्य लोगो,बताना कौन अश्लील है हम या वो

हमारे कपड़ो और उनके ना बराबर कपडो में भी कितना अंतर करते है सभ्य लोग
देख उनके लटके झटके, 'सेक्सी का या 'ज़ीरो फिगर' का खिताब देते है सभ्य लोग

मै जिस्म बेचूँ, कंही नाँचू तो ध्न्धा कंहते है इसे सभ्य लोग
वो बेचे - खरीदे तो 'इलीट' कहते है उन्हे सभ्य समाज के लोग

-       प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 


शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

तुझ संग प्रीत लगाई हिन्दी



[ गीत 'तुझ संग प्रीत लगाई सजना' से प्रेरित होकर हिन्दी के लिए खासकर फेसबुक पर मित्रो के लिए    ]

तुझ संग प्रीत लगाई हिन्दी
हिन्दी हिन्दी ओ हिन्दी
भारत के माथे की बिंदी

आजा अब यहाँ पर तेरा प्रयोग करूँ
अपना नाम भी यहाँ हिन्दी मे लिख दूँ
मित्रो को भी तेरा उपयोग सिखा दूँ
एक तू ही मन को है भाई हिन्दी
हिन्दी हिन्दी ओ हिन्दी
भारत के माथे की बिंदी

तूने मुझे बचपन से बोलना सिखाया
अपने भावो को तूने लिखना सिखाया
दुख और सुख को कहना सिखाया
फिर भी अँग्रेजी तुझ पे भारी हिन्दी
हिन्दी हिन्दी ओ हिन्दी
भारत के माथे की बिंदी

तुझे सीखने अब सब आगे आए
अंतर्जाल पर कई सॉफ्टवेयर पाये
अब मित्रो से है अनुरोध करते जाये
इच्छा है सब लिखे पढे हिन्दी
हिन्दी हिन्दी ओ हिन्दी
भारत के माथे की बिंदी

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 15 अगस्त 2012

मैं भारत



मैं भारत बोल रहा हूँ
आज तुम खुद को 65 का बता रहे हो
आज़ादी का जश्न मना रहे हो
मैं सदियो से इस ब्रह्मांड में हूँ
अपने अस्तित्व को बनाए रखा
विश्व में तुमको अग्रणी स्थान दिया
संस्कृति व सभ्यता का तौहफा दिया
तुमको नाम दिया काम दिया
तुमको जीने का हर मंत्र दिया
वेदो ग्रंथो द्वारा तुमको जीवन का सार दिया
किसी न किसी रूप मे जीने का सूत्र दिया
लेकिन तुम खुद मे इतना खो गए
कि जिसने जब चाहा तब लूटा
न जाने कितने मुझ पर वार हुये
हर बार गिरते हो फिर संभलते हो
लेकिन वही भूल हर बार कर जाते हो
फिर तुम एक दूजे को भूल जाते हो
हर युग मे क्रांतिकारियों ने जन्म लिया है
मेरे अस्तित्व की खातिर प्राणो की आहुति दी
लेकिन तुम उनके बलिदानों याद नही रखते
रोज भारत के प्रति सोच नही सकते
एक दिन याद कर वंदे मातरम कहते हो
इतिहास गवाह है कितने दुकड़े तुमने मेरे किए
देखो अखंड भारत के तुमने ये कितने खंड किए
एक दूजे के प्रति ईर्ष्या रखते हो
खुद कुछ भी करने से तुम डरते हो
धर्म का आडंबर ओढ़ कर आज अपनों से लड़ते हो
सुरक्षा को दूसरे की खातिर नज़र अंदाज़ करते हो
मेरे तन पर को आज भी बांटने का खेल चल रहा
धर्म के नाम पर साजिश और खूनी खेल चल रहा
इसी कारण कुछ वर्ष पहले अंग्रेज़ो के आधीन हुये
कुछ वीरो और शहीदो के कारण फिर स्वाधीन हुये
आज भी समय है खुद को भारत का हिस्सा मानो
आंखे खुली व सीना चौड़ा रख देश का गौरव बनो
मेरे अस्तित्व का मान रख देश को सर्वोपरि मानो
आज जन-जन के हृदय मे भारत को अपना मानो
मैं भारत फिर से तुम्हें अपना होने का न्यौता देता हूँ
हाँ मैं 'भारत' बोल रहा हूँ, हाँ मैं 'भारत' बोल रहा हूँ
...... प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

रविवार, 12 अगस्त 2012

शुक्रिया !!!





मेरे देश के खिलाड़ियो तुमने खेल दिखाया बढ़िया
भारत का गौरव बढ़ाने हेतु  बहुत -  बहुत शुक्रिया
6 पदक जीतकर तुमने  इतिहास नया लिख दिया
युवाओ के दिलों मे प्रेरणा को प्रज्वलित कर  दिया

जानता हूँ आज भारत मे क्रिकेट का ही बोलबाला है
हॉकी मे निराशा मिली,शायद ये संगठन खोखला है
लेकिन आपके प्रदर्शन से बढ़ा युवाओ का हौसला है
जीत से  आपकी खेलो के प्रति रुझान अब बदला है

आने वाले कल मे खेलो का भविष्य अब सुनहरा है
हर प्रतिभा को मिले सम्मान यह नारा अब हमारा है
देश के लिए खेलना गर्व की बात और संयोग प्यारा है
भारत को गौरव बढाना, अब यह ही कर्तव्य तुम्हारा है

शुभं !!!

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 11 अगस्त 2012

हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है





स्वतन्त्रता दिवस पर
मेरा जोश देखते बनता है
यही जोश
गणतन्त्र दिवस पर भी
दिखता है
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

रोज की आपा धापी मे
कहाँ याद रहता है
बस याद रहता है तो
सब कुछ करने,
और कहने की आज़ादी
रिश्वत दे भी देता हूँ
रिश्वत ले भी लेता हूँ
मेरे बात न माने कोई
तोड़ फोड़ खूब करता हूँ
संस्कृति संस्कारो से
मैंने आज़ादी पा ली है
कोई रोके मुझे तो
वो मेरी आज़ादी पर हमला है
लेकिन आज
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

कोई याद दिला दे तो
शहीदो को नमन कर लेता हूँ
दो शब्द कह कर
मैं भी देश भक्त कहलाता हूँ
कहीं कोई आवाज़ उठे
उसे मैं भी सुन लेता हूँ 
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ 
कुछ कह कुछ लिख लेता हूँ
सड़क पर उतरने
का 'रिस्क' मैं नही लेता हूँ
भूख और प्यास
केवल अपनी देख लेता हूँ
लेकिन आज
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

नेताओ को कोस
मैं देशभक्त कहलाता हूँ
वोट की खातिर
मैं बिक बिछ जाता हूँ
जाति धर्म पर
मैं खुद को बाँट लेता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाने
अपने ही धर्म को कोस लेता हूँ  
अलग दिखाने 
संस्कारो को ताक पर रख देता हूँ
लेकिन आज
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

कौन सच्चा कौन झूठा
इसको कसौटी पर तोलता हूँ
खुद के अंदर झांकना छोड़
दूसरे को सही गलत सिखाता हूँ
राजनीति की आड़ मे
अपनों से किनारा कर जाता हूँ 
फक्र होता है मुझे
जब भारत को 'इंडिया' कहता हूँ
अँग्रेजी से मोह किया
हिन्दी मे कभी कभी बतिया लेता हूँ
भगवा रंग अब संप्रदायी हुआ
सफ़ेद खून हुआ, हरे को लाल कर लेता हूँ 
लेकिन आज
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

माँ पिता को अपने
वृद्धाश्रम का सुख भोगने भेज देता हूँ
स्नेह जो दे मुझे
काम हो जाने पर मुंह उनसे मोड लेता हूँ
बेटे की ख्वाइश रख
कन्या को जन्म से पहले मौत दे देता हूँ
खुद की सुरक्षा के लिए
हर अत्याचार अपवाद देख आंखे मूँद लेता हूँ
लेकिन आज
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

हूँ कैसा भी मैं
स्वतन्त्रता दिवस व गणतन्त्र दिवस मना लेता हूँ
खरीद 'रेड लाइट' पर तिरंगा
उस बच्चे के चेहरे पर मुस्कान जरूर देख लेता हूँ
आज केवल इस मुस्कान के लिए
हाँ मुझे तिरंगा खरीदना है
स्वतन्त्रता दिवस मनाना है

वंदे मातरम !!!

-          प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

बुधवार, 8 अगस्त 2012

गरीब मिटाओ - गरीबी हटाओ






गरीब और गरीब, अमीर और अमीर हो गया
दोनों के मध्य जनता का यूं बंटवारा हो गया
आज की माने तो गरीब अब अमीर हो गया
गरीबी तो नही हाँ गरीब का गरुर मिट गया

आज़ादी से अब तक गरीबी हटाओ इनका नारा है
गरीब तो बस बना इन नेताओ की आँख का तारा है
सत्ता का बीमा पाया वोट से पहले प्यार लुटाया सारा है
मिटायेंगे गरीबी आज भी इनको लगता प्यारा ये नारा है

नेता का नारा है वोट दोगे तो संग हमारे सवेरा है
रणनीति और राजनीति का तो बस ये बना चेहरा है
हर हाथ थामे दिखाता है लेकिन चरित्र इनका दोहरा है
गरीब केवल अब तो बना सियासी खेल का मोहरा है

करोड़ो खर्च करके उसे योजना मे इन्होने लगा दिया
गरीब से वादा कर एक लोलीपोप इन्होने थमा दिया
हट गई है गरीबी अब,  इन्होने यह ऐलान कर दिया
पेट की चिंता को इन्होने अब चिता मे जो बदल दिया

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 4 अगस्त 2012

ऑलिंपिक से बड़ा खेल राजनीति का



न दिया कोई भाव अन्ना के अनशन को
कांग्रेस ने दिखाई फूटनीति टीम अन्ना को  
अनशन के खेल मे लगा झटका टीम अन्ना को 
कैसे निपटे इसलिए बुलाया प्रतिष्ठित व्यक्तियों को
आखिर कुछ दिनो का ये अनशन टूट ही गया 
जंतर मंतर का ये भ्रम आज शाम टूट ही गया
व्यवस्था से लड़ कर जनता को जगाने आए थे
आज खुद ही नेताओ की चाल मे वो आ ही गए
माँ भारती का जब चित्र मंच से हटाया था
कैसे देशभक्त हैं ये तब हमारा भ्रम टूटा था
सांप्रदायिक के 'लेबल' ने तो अपना काम कर दिया
जिनका मिला साथ उन्हे, उनसे खुद को अलग किया 
सुना है विकल्प तैयार हो रहा अब राजनीति का
अनकहा गठबंधन है शायद ये किसी रणनीति का
भ्रष्टाचार ही मुद्दा बना लिया अब संसद जाने का
राजनीति ही रास्ता जनता को बेवकूफ बनाने का
कुछ अलग थी पहचान अब तक अन्ना की
राजनीति ही सीढ़ी व ढाल बनेगी अन्ना की
बुला मैदान मे आंदोलन को तो दफना दिया है 
बाँटकर विपक्ष को कांग्रेस देखो अब मुस्कराती है 
ऑलिंपिक से बड़ा खेल है भारत मे राजनीति का
देखेंगे टीम अन्ना कैसे काटेगी जाल राजनीति का
-          प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

लहू का ये रंग




[एक पुरानी रचना  - आज विजय दिवस पर शहीदो को समर्पित ]

लहू के दो रंग एक गम है तो एक खुशी
वतन पर कुर्बान होते है शहीद खुशी खुशी
दुख झेलकर हमे देते रहे वो सारी खुशी
आज़ादी को खून से सीचा उन्होने खुशी खुशी

हमारा खून अभी सस्ता नही हुआ है
उस मां से पुछो जिसने बेटा खोया है
समेट दुख के आंसू अर्थी पर फूल चढाये है
देश की खातिर आंचल को अपने कफन बनाया है

इतिहास गवाह है, पन्ने खून से है रंगे हुये
हमे आज़ादी देकर खुद है धरती मे सोये हुये
धन्य है येसे वीर जो शहीद हुये वतन के लिये
जिसकी खातिर कुर्बानी दी उसी मे है लिपटे हुये

धर्म और कर्म की खातिर भी खून बहाया है
दे लहू इन वीरो ने धर्म और समाज को बचाया है
बहा खून इतिहास मे नया अध्याय बनाया है
होकर फ़ना हमें जीने का नया रास्ता दिखाया है

जय हिंद !!!!! नमन शहीदो को
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
 

बुधवार, 18 जुलाई 2012

मैं सीता मैं द्रौपदी ...... जरा सुन लों





क्यों आज तुम हमे इतना याद करते हो
जो हुआ भी नही वो भी तुम सोच लेते हो
तुम को सिखलाने हमने कितने रूप धारे थे
सीखे तो कुछ नही पर हमे बदनाम करते हो

हमने तब भी नारी शक्ति का परिचय दिया था
सिखलाने तुमको हाँ हमने कुछ अपमान सहा था
क्यों, कैसे ये हुआ इसका कारण भी बतलाया था
सीख न सके न सही, गलतियो का न दुष्प्रचार करो

त्याग, ममता, स्नेह और आदर का ताना - बाना था
सत्य - असत्य का भेद तुम्हें हमने तब समझाया था
कभी सीता कभी द्रौपदी बन स्त्री का हर रूप दिखाया था
अपमान जब भी हुआ, उस भाव का हमने संहार किया था

हर पात्र एक मर्यादा था उस पर ही जीता - मरता था
पर उसे ढाल बना तुम आज अपमानों का बाज़ार सजाते हो
जानते हो तुम, आज वो युग बीत गया और तुम बदल गए हो
लेकिन केवल आज अपनी खातिर हमे ही क्यों मोहरा बनाते हो

हम उस वक्त भी कमजोर नही थे और आज भी तुम लाचार नही
नर - नारी अलग नही,  त्याग - ममता मे हम थोड़ा बेहतर सही
हमने कुछ किया और कुछ सहा केवल तुम्हें बतलाने की खातिर
आज तुम अपने बल कुछ कर जाओ अपनी अगली पीढ़ी की खातिर

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 14 जुलाई 2012

मेरा आज का परिचय




मैं तो अपने घर मे सकुशल रहता हूँ 
आस - पास जो होता है देखता रहता हूँ
कभी गुस्सा तो,  कभी प्रेम जतला देता हूँ
तर्क - वितर्क भी अब मैं अच्छा कर लेता हूँ 
सबको कर्तव्य पाठ पढ़ा,वहाँ हिस्सा बन जाता हूँ
कभी तो कुतर्क का सहारा भी ले बात कह देता हूँ
कभी हाँ मे हाँ मिला, कभी ना मे ना मिला लेता हूँ
कभी अपने समाज को कभी एक वर्ग को कोस लेता हूँ
कभी आज़ादी के नाम पर जो मन मे आए वो करता जाता हूँ
कभी बदलाव के नाम जो आज़ादी दे वो सभ्यता अपना लेता हूँ
खुद कुछ कर नही पाता इसलिए उम्मीद व आशा दूसरों से रखता हूँ
अपने संस्कार और संस्कृति को कोस मैं अब 'लिबरल' कहलाता हूँ
कुछ बाते अपने फायदे की यहाँ वहाँ से उठा तोड़ मोड लेता हूँ
सीखा कुछ नही उनसे पर अपवाद को ढाल बना जी लेता हूँ
अत्याचार सहन नही लेकिन हो तो गूंगा-बहरा बन जाता हूँ
सरकार, राजनीति व नेताओं को मौका मिले कोस लेता हूँ
भ्रष्टाचार से खफा पर अपना काम करवाने रिश्वत देता हूँ
देश मे बढ़ रहे अपराधो को देख, मैं चिंता कर लेता हूँ
अपना काम निकाल कर फिर मैं सभ्य बन जाता हूँ
बिन सच जाने मैं केवल भीड़ बन तमाशा देखता हूँ
आज मित्रों मैं खुद से खुद का परिचय दे रहा हूँ

प्रतिबम्ब बड़थ्वाल 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

सुनो !! अतीत कुछ कह रहा


हे मानव
तू मुझे छोड़
दौड़ता जा रहा है
बस अपनी ही धुन में

ये सच है की
मैं ही तुम्हें आगे बढ़ाता हूँ
पर तुम तो
मुझे धकेलकर
आगे दौड़ रहे हो

जानता हूँ
रुकना तेरी नियत नही
मुड़ कर देखना फितरत नही
पर तुम तो
स्नेह आदर संस्कृति संस्कार
का तिरस्कार कर चुके हो
इंसानियत का गला घोट चुके हो
बस अपने नाम के लिए
मुझे ही बदनाम कर रहे हो
स्वार्थ और धोखे की चढ़ सीढ़ी
खुद को ऊंचा समझ मुस्कराते हो

सिखलाने तुमको जीवन सत्य
सिखलाने तुमको जीवन मूल्य
परंपराओ का लिया सहारा था
आज सफल हुये जो जीवन मे
तब भी मुझ पर अंगुली उठाते हो
खुद कारण बने असफलता का
अब कारण मुझे बताकर कोसते हो

वैसे तुम पर एतबार कैसा ?
ममता का झूठा ढोंग करते हो
ममता की मूरत कन्या को
तुम जीवन से पहले मौत देते हो
जंन्म देकर पाला पोसा जिसने
तुम उन्ही को तिरस्कृत करते हो
हर सुख त्याग, प्यार और खुशी दी जिसने
अपने सुख की खातिर दुखी उनको करते हो
फिर भी निवेदन है तुमसे
कन्या को जीवन दे लक्ष्मी घर आने दो
माँ - पिता को हर पल खुद मे जिंदा रखो
इन रिश्तो की डोर को अतीत मत बनने दो

मैंने चलने से, कब तुमको रोका है
तुम्हारे आगे बढ्ने से तो, मैं वजूद मे रहता हूँ
अतीत बनकर, जिंदा रहूंगा सदा
बस एक विनती है, धीरे चलना
इस आज को भी, तो अतीत बनना है
जो मैंने सिखाया, तुम उसे भूलना नही
प्यार और सम्मान का हक, तुम सबको देना
परंपराओ को अपनी, अपवाद मत बनने देना
अपनी संस्कृति संस्कार का परिहास करना नही
जीवन मूल्यो को अपनाना, उनसे खेल खेलना नही
अच्छे बुरे का स्मरण कर लेना, सच को बस अपना लेना
अतीत हूँ, पर याद रखना आज भी तुम्हें कुछ सिखला जाऊंगा

- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

गुरुवार, 28 जून 2012

ॐ साईं



ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ॐ साईं 
तेरी महिमा सबने हर रूप में गाई ॐ साईं
तेरी भक्ति मे सबने खुशी अपनी पाई ॐ साईं
जो बन पड़ता तुझसे देता तू सबको ॐ साईं 
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ॐ साईं

कोई गाता तेरी आरती  ॐ साईं 
कोई तुझ पर पुष्प चढ़ाये ॐ साईं 
कोई धन का दान करता ॐ साईं 
मैं तुझे बस मन मे रखता ॐ साईं  
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ॐ साईं

हर पल तू सबको राह दिखाता ॐ साईं
किसी भी रूप मे दर्शन दे जाता ॐ साईं
हर पंथ का बंदा है तेरा अनुयायी ॐ साईं 
सबके मन की आवाज तू सुन लेता ॐ साईं
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ॐ साईं

कहने को शिरडी मे है निवास तेरा ॐ साईं 
बसता है तू सब भक्तों के दिल मे ॐ साईं 
हर भक्त से अनूठा है रिश्ता तेरा ॐ साईं  
पर सबसे अलग है नाता मेरा तेरा ॐ साईं
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ॐ साईं

---- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ----

सोमवार, 25 जून 2012

लम्हा - लम्हा आओ फिर से जी जाएँ




कौन - कौन है अपना यंहा, किस - किस ने दिया साथ
कंहा - कंहा अपना ठिकाना, किस - किस ने थामा हाथ

चुन - चुन कर दोस्त बनाते, बुन - बुन कर रिश्ते संवारते
कण - कण प्रेम का हम सजाते, जन - जन को अपना कहते

आज - कल का भेद ना जाने, कल - परसो के लिये आज बिगाड़े
धर्म - अधर्म का पाठ रोज़ पढते, पल - पल धर्म से हम नाता तोड़े

इधर - उधर की बातों मे कान लगा, जन - मानस की करते बात
सुध - बुध खो बिखर रहे, क्षण - क्षण दुश्मनी की बैठ रही बिसात

तेरा - मेरा बना अब रिश्ता,  उलट - पुलट हुआ देखो सब विधान
अपने - पराये का बस छेडते राग, करते - करते छोड जाते निशान

तन - मन में आओ प्रेम जगाये, घर - घर में देश प्रेम की जोत जलाएँ
जन - जन को अपना हम बनाएँ, लम्हा - लम्हा आओ फिर से जी जाएँ

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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