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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

फ़ूड [वोट] सिक्यूरिटी बिल



आखिर लोक सभा में
वोट सिक्यूरिटी बिल पास हो गया
सपना सत्ता में वापिस आने का
आखिर एक कदम आगे बढ़ ही गया

ठोस कुछ किया नही
घोटालो के मामले बने है सत्ता का रोड़ा
एक मात्र सहारा नाम गरीब का
वोट सिक्यूरिटी बिल से सकूं मिला थोडा

गरीब देख हक्का बक्का है
६५ वर्षो से गरीबी खेल का बना एक्का है
गरीब को मिटा आंकड़ो से खेल
इतने सालो में बस वोट को किया पक्का है

आंकड़ो का मनभावन खेल
खेलती और पीठ थपथपाती अपनी सरकार
बढ़ती महंगाई और गिरता रुपया
ले नाम गरीब का, जनता का करते तिरस्कार

अपना हित देखती सरकार
करने इसे पूरा संसद को बनाती हथियार
गरीब और अल्पसंख्यंक है बस मुद्दा
ये दोनों ही है उसके अपने वोट बैंक आधार

गरीब और अल्पसंख्यंक
हालात आज भी नही बदले है, जहाँ थे वही खड़े है
एक को लोलीपोप, दूसरे को आरक्षण
इसके सिवाय दिया क्या, लोग एक दूजे से लडे है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 17 अगस्त 2013

तेरी थाली मेरी थाली




हो तेरी थाली या मेरी थाली
अब प्याज बिन लगती गाली
रोटी प्याज की थी हम जोली
किसने इस पर बुरी नज़र डाली
बिन प्याज हुई अब गरीब की थाली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

दोस्त या दुश्मन, बीबी हो या साली
सबने है अब प्याज से दूरी बना ली
प्याज बिन है अब ये सब्जी की थैली
महंगाई पर सत्ता ने चुप्पी साध ली
आम आदमी की जेब  हो रही खाली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

गरीबी की नई परिभाषा बना ली
गरीब और अमीर की खाई बढ़ा ली
देकर चांवल आटा सब्जी छीन ली
देकर प्रलोभन अंतरात्मा खरीद ली
गरीब को गरीब करने की ठान ली
तेरी थाली मेरी थाली लगती खाली

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

जिन्दगी कभी यूं भी ....




तूफ़ान से की थी दोस्ती, वो रोशनी बुझा गया
खौला था जो खून, अरमान सारे झुलसा गया
चला जब अंगारों पर, सपनो को जलाता गया
फूलो की ख्वाइश में, कांटो से छलनी हो गया

माना था जिसे दोस्त,  वो दुश्मनी निभा गया
समझा जिसे अपना,  वो आज पराया हो गया
वफ़ा की थी जिससे उम्मीद, वो बेवफा हो गया
दस्तूर दुनिया का, जिसे चाहा वो दूर हो गया

किया जुर्म दिलो ने, लम्हो से शिकायत हो गई
माँगा मशविरा अपनों से, बात अपनी आम हो गई
दुश्मन की चाल 'प्रतिबिंब' काम अपना कर गई
धोखा दे गई किस्मत और बदनाम हमें कर गई  

शनिवार, 27 जुलाई 2013

सलाम टेलीग्राम


फेसबुक समूह 'तस्वीर क्या बोले' में लिखे गए भाव 


~सलाम टेलीग्राम~


सेम्यूल मोर्श की सोच ने विश्व को दी थी ये नई सौगात
दूर संचार में हुई क्रांति, जब टेलीग्राम का हुआ अविष्कार
२४ मई १८४४ को पहला टेलीग्राम वासिंगटन से बाल्टीमोर
संक्षिप्त में हर खबर पहुँचाने का फिर देश में हुआ विस्तार

छुट्टी आना हो, नौकरी मिलना हो या फिर हो कोई भी अवसर
टेलीग्राम से ही मिलता था तुरंत ही खुशी गम का हर समाचार
१६३ साल की संस्कृति को अब सदा के लिए लग गया विराम
इतिहास हुए अब मशीन की वो टूक-टूक-ट्रा, तारबाबू और तारघर

नई तकनीक का आना और फिर उसका यूं हमें विदा कहना
समझा गया हमें, जिन्दगी और रिश्तो का भी हाल यही होगा
चला गया उसे जाना था 'प्रतिबिंब', नई सोच को स्थान दे गया
अब म्यूजियम की शान बनेगा, टेलीग्राम तू हमें सदा याद रहेगा

[ https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/ ]

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

चलो जश्न मनाये .....



मैं आज गरीब नही हूँ
किसी को रहम आया
जलेबी ब्रेड मेरे नसीब में आया
आज मैं खुश हूँ
देश की ६५ सालो की गरीबी दूर हुई
गरीब का मूल्य ३० रुपये ठहराया
और गरीबी को आंकड़ो से दूर भगाया

चलो आओ खुशियाँ मनाये
दाल रोटी हम १२ रुपये में खाएं
अरे सरकारी नेताओ
फ़ूड सिक्योरिटी बिल पर क्यों करोडो लगाते?
जब ५ और १२ में खाना मिल जाता
गरीब और अल्पसंख्यंक आज भी वही खड़ा है
तुम्हारे वादों के अहसान तले ज्यों का त्यों दबा पड़ा है

पर अब मजाक करने की भी हद होती है
मार रहे हो हमें दिन प्रतिदिन महंगाई से
जलता है रोज कलेजा
उस पर नमक छिड़क रहे हो
उड़ा लो हमारी तुम खूब खिल्ली
चलो मान ली आपकी दरिया दिली
५ रुपये में मिलेगा भर पेट खाना
लेकिन ५ या १२ रुपये मैं कहाँ से लाऊं ???


-    -  प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 21 जुलाई 2013

हैल्लो जिन्दगी



नमस्कार जिन्दगी !
न जाने तुम कब आगे निकल गई
सुप्रभात, नमस्कार को छोड़ पीछे
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई

अपनाया था अपना समझ
आज तुम पराई हो गई
खेल रही हाथो में उनकी
दौड़ पूर्व से पश्चिम की हो गई

खो दिया अपनी अमानत को
भारतीयता अब 'इन्डियन' हो गई
संस्कार और संस्कृति हमारी
शायद अब कोई भूली कहानी हो गई

सोचा था विरासत अपनी सौंप देंगे
पर ये पीढी खुद में सिमट कर रह गई
देखे थे सपने बहुतेरे पर जागे नही
जब जागे तो उम्मीदे सब स्वाहा हो गई

नमस्कार जिन्दगी !
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

बुधवार, 17 जुलाई 2013

मेरा पहाड़ (त्रासदी के एक महीने बाद )




आज
एक महीना हुआ
पहाड़ में हुई उस तबाही को
उस मंजर की तस्वीरे
उस त्रासदी के वीडियो
उस विपदा पर बहस
उस राहत पर राजनीति
शायद कुछ दिनों में बंद हो जाए

लेकिन
मेरे पहाड़ पर आपदा
मेरे पहाड़ ने जो सहा
मेरे पहाड़ ने जो देखा
वर्षो वर्षो तक इसका दर्द
दर्द बनकर ही रहेगा
अपनी जमीन अपने लोग
अपने जंगल अपने रास्ते
अपने गाँव अपनी विरासत
जिन्हें हम खो चुके है
मेरा पहाड़ कैसे भूल पायेगा

हाँ
वक्त के साथ फिर निर्माण होगा
मेरा पहाड़ फिर चार धाम होगा
पर्यटकों का फिर आवागमन होगा
मेरे पहाड़ के लोग फिर खड़े होंगे
भूलो को सुधार फिर जीना सीखेंगे
अपनी गलती से सीख फिर
खूबसूरत पहाड़ का निर्माण करेंगे

हाँ
आज श्रधांजलि उन्हें
जो लौट कर न आये
भगवान की शरण गए
और उनके ही हो गए

हे प्रभु
था तो कठोर तुम्हारा निर्णय
किया अपनों को अपने में विलय
बस अब तुम रक्षा करना
कुछ गलत न हो अब ध्यान रखना
सद्बुद्धि दे  हमें आशीर्वाद बनाये रखना

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

सोमवार, 8 जुलाई 2013

मेरा पहाड़




मेरा पहाड़
है भूमि देवो की
मेरा पहाड़
है विरासत संस्कृति की,
मेरा पहाड़
है कहानी संस्कार की
मेरा पहाड़
है मिसाल मानवता की

मेरा पहाड़ और उसका दिल
आज रोता है
मेरा पहाड़ और उसका हौसला
टूटा है
मेरा पहाड़ और उसका सम्मान
गिरा है
मेरा पहाड़ और उसका भगवान
रुष्ट है

मेरे पहाड़ को
अपनों ने तोडा और मरोड़ा है
देख लिया नतीजा
अब शमशान बना कर छोड़ा है
राजनीति का खेल
इंसानियत ने यहाँ दम तोडा है
डूब गए ख्वाब
लेकिन अभी जीना नही छोड़ा है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 29 जून 2013

मैं पहाड़



मैं पहाड़


हाँ मैं पहाड़ !!
यूं तो पहाड़
हर जगह  विद्दमान है
मेरी खूबसूरती और मौसम
मनुष्य के मन को
शांति और सुकून देती है
शायद इसलिए
तुम्हारी आस्था के भगवान भी
सदियों से यहाँ विराजमान है ......

लेकिन समय के साथ
विकास के नाम पर
मेरे सीने पर इन्सान ने
विनाश की इबारत बना दी है
भगवान के नाम पर
न जाने कितने भगवान
मुझ पर बेहिसाब लाद दिए
पर्यटन के नाम पर
बेहिसाब दुकान और होटल
मुझे खोखला कर रहे है

जंगल और पेड़ मेरा अस्तित्व
आज विकास की भेंट चढ़ गए
नदियों से मेरा जीवन
जिसके किनारो को तुमने हड़प लिया
हे मानव !! अपने जीने के लिए
तुम क्यों मेरा जीना दुश्वार कर रहे


उत्तराखंड !! हाँ ये देव भूमि है
मैंने सैकड़ो देवी देवताओं को
अपने में है  स्थान दिया
शांति पहाड़ो का आचरण है
शोर से तुमने खलल डाला है
हे मानव !! तुम्हारे स्वार्थ ने
मुझे आज फिर छलनी किया
बना कर पाप का भोगी मुझे
देवी - देवताओ को रुष्ट किया
नदियों के प्रवाह से खेलना महंगा पड़ा
कई गाँव, घर और जानो को समां दिया  

ना चाहते हुए भी, कई बार तुम्हे
तुम्हारी गलती का अहसास कराया था
तुमने न सबक लिया न कोई प्रयास किया
बार बार फिर वही काम और बेहिसाब  किया
दुःख है मुझे कि तुम्हे इस बार सबक सिखाने
निर्दोष भी, भक्त भी मेरे गुस्से का शिकार हुए
शायद यह नुकसान तुम्हे याद दिलाता रहे
और तुम खुद को  और मुझे अब जीने दोगे.....




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शनिवार, 22 जून 2013

बाबा विनती तुझसे ....



बाबा इस कहर में भी, तेरा अस्तित्व आज यूं ही कायम है
जता दिया तूने आज भगवान और इंसान में अंतर क्या है
गलती जिसने भी की, दंड उसका तूने सबको दे ही दिया है
ली तूने बलि हजारो की, तेरे सिवाय वहां अब बचा क्या है

मंदाकनी के क्रुध प्रवाह को रोक तूने खुद को बचा लिया
खुद के मान सम्मान को तूने हमारी श्रद्दा से तोल दिया
कुछ को दी जिंदगी, कुछ को तूने अपनों से छीन लिया
लाखो करोडो भक्तो का तूने, श्रद्धा-विश्वास हिला दिया

श्रद्धा में शायद कमी हुई, दिखावा क्योंकि अब ज्यादा है
पवित्र स्थलों में प्रदूषण और चोर बाजारी अब ज्यादा है
प्रकृति व् पर्यायवरण को रख ताक, तेरा नाम भुनाया है
जंगल नदियों से खिलवाड़ का सबको सबक सिखाया है

अब रहम करना और इस कहर से तू सबको बचा लेना
हुई जो गलतियाँ हमसे, सुधार उन्हें तू रास्ता दिखा देना
प्रकृति व् भगवान का रिश्ता समझे अब तू शरण में लेना
अब रूठना नहीं यूं , हर विपदा से बाबा तू हमें बचा लेना

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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