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बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ


तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
अपनी धुनों से दीवाना तुमको बनाऊँ
प्यार के खेल में जीत ले हम बाजी
तुम संग नाचूँ, गीत, मिलन के गाऊँ

तुम कहो तो दुनिया से मैं लड़ जाऊँ
धरती क्या अम्बर में तूफान मचाऊँ
सागर की मौजो को गले लगाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ

पंछी जैसे साथ तुम्हें ले मैं उड़ जाऊ
नील गगन में प्यार तुम्हें सिखलाऊँ
तराना प्यार का तुमको मैं सुनाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ

दिल में अपने मूरत तुम्हारी है बनाई
किया है प्यार तुम्हीं से, ये है सच्चाई
साथ जियेंगे कसम ये है मैंने खाई
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ

-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

तो क्या बात होती


- तो क्या बात होती-

ख्वाब हकीकत बन जाते तो क्या बात होती
हम - तुम एक हो जाते तो क्या बात होती

तेरा दर्द मैं सह पाता तो क्या बात होती
तेरे आंसू मेरी आंख से आते क्या बात होती

तेरा गम मैं समेट पाता तो क्या बात होती
तेरी परछाई मैं बन पाता तो क्या बात होती

मेरी खुशनसीबी तुम्हें मिल जाती तो क्या बात होती
तुम्हारा प्यार मुझे मिल जाता तो क्या बात होती

मेरा सुख-चैन तुम को मिल जाता तो क्या बात होती
मेरी मुस्कराहट तुम को मिल जाती तो क्या बात होती

तेरे दामन में ख़ुशियाँ मैं भर पाता तो क्या बात होती
दुनिया की बुरी नज़र से बचा पाता तो क्या बात होती


- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

(पुरानी रचना दूसरे ब्लाग से)

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

फिर भी ना जाने क्यो-(प्रेम का एक रुप ये भी)


-फिर भी ना जाने क्यो-

प्रेम अर्थ है,
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥

प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥

प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥

प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥

प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥

प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥

प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हा
र है॥

- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

(पुरानी रचना आप लोगो के लिये दूसरे ब्लाग से)

रविवार, 4 अक्टूबर 2009

जिन्दगी का चित्रण

- जिंदगी का चित्रण -

बिन्दु-बिन्दु से बनता जिंदगी का चित्रण
सजता उसमें हमारी आशाओं का दर्पण
करती उसमें इच्छायें स्वच्छंद विचरण
रंग जाते उसमें भिन्न- भिन्न प्रकरण

अन्तरात्मा का है जिसमें विवरण
भावों का रहता है जिसमें समर्पण
कर देते है उसमें सब कुछ अर्पण
खूबसूरती का रहता जिसमें आकर्षण

समेटे हुये जो सच का आवरण
करता है खुशियों का वितरण
प्रेम की खुशबू फैलती छ्ण-छ्ण
बोल पड़ता है -जिसमें कण-कण

-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
(अपने दूसरे ब्लाग से ली गई पोस्ट)
कण

शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

ये क्या सिखाया आपने



सो रहा था मां के गर्भ में
सब बातो से अनजान
शायद जानता भी था,
नही कर पाया तब बयान.


खुश था अपनी दुनिया में,
परियो के उस सुंदर संसार में,
सब के चेहरे पर खुशी लाता था,
करता था तब सब से प्यार मैं

ना धर्म की पहचान थी तब मुझे,
ना शत्रुओ का ज्ञान था तब मुझे
आज धर्म ही मेरी पहचान बनी,
ये दुशमनी क्यो सिखाई आपने मुझे?

आंख खुलते ही ये क्या सिखाया आपने,
अपनो से ही बैर सिखाया क्यो आपने ?
हार जीत की कसौटी पर खडा किया,
क्यो अपनो को हराना सिखा दिया आपने?

तब रोता था बस चाह में अपनो की,
ढूढता था अपनो को ललचाई आंखो से
आज हंसना सिखाया आपने अपनो पर,
आज क्यो मै रोडा बनता अपनो के सपनो पर?

कभी सोचता हूं अनजान ही अच्छा था,
दुनिया से जब तक ना ये सब सीखा था,.
आओ शांति - अंहिसा की राह सब चले
द्वेश छोड अब प्रेम की राह हम सब चले


-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009

गुदडी का लाल



~गुदडी का लाल~

निर्धनता के दामन थामे, जिनके बढते रहे कदम,
येसे लाल बहादुर को करते है आज हम सब नमन,

कद के छोटे थे लाल, फ़िर भी ऊंचे थे उनके विचार,
जीवन के हर मोड पर सादगी ही था उनका आधार.

गांधी-नेहरु के संग उन्होने आज़ादी की लडी लडाई,
हर आंदोलनो में कूद भारत को आज़ादी दिलवाई.

कठिन समय मे की उन्होने भारत की अगुवाई,
कुछ निर्णयो को लेकर उन पर अंगुली भी उठाई.

लाल बहादुर ने देश का बचाया सम्मान,
दे कर नारा "जय जवान - जय किसान".

शांति की खोज़ मे ताशकंद पहुंचा यह लाल,
वही से अलविदा कह गया ये गुदडी का लाल.

-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

बुधवार, 30 सितंबर 2009

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल - हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ( १३ दिसंबर, १९०१-२४ जुलाई, १९४४) 
हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल),उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने"अंबर" नाम से कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने हिन्दी में शोध की परंपरा और गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे उत्तराखंड की ही नही भारत की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला. उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल)के प्रति भी उनका लगाव था.

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके शोधकार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोयट्री'- अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशनमें किया था) के लिये.

उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फारसी के शब्दो और बोली को भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना. उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूदृष्टि के भी परिचायक हैं. उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.

निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती है.

· रामानन्द की हिन्दी रचनाये ( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)

· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (. श्री गोबिंद चातक)

· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का संकलन व सम्पादन)

· सूरदास जीवन सामग्री

· मकरंद (. डा. भगीरथ मिश्र)

· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)

· 'कणेरीपाव'

· 'गंगाबाई'

· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',

· 'कवि केशवदास'

· 'योग प्रवाह' (. डा. सम्पूर्णानंद)

उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब भी उनकी पुस्तके प्रकाशित करती है. कबीर,रामानन्द और गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ० पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ०बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.

"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है

" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं,क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे गोरख बानी नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं पुस्तक ग्यान चौंतीसा समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी,परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है".

उन्होने बहुत ही कम आयु में इस संसार से विदा ले ली अन्यथा वे हिन्दी में कई और रचनाओ को जन्म देते जो हिन्दी साहित्य को नया आयाम देते. डॉ० संपूर्णानंद ने भी कहा था यदि आयु ने धोखा न दिया होता तो वे और भी गंभीर रचनाओं का सर्जन करते'

उतराखंड सरकार, हिन्दी साहित्य के रहनुमाओ एवम भारत सरकार से आशा है कि वे इनको उचित स्थान दे.

(आप में से यदि कोई डॉ० बड़थ्वाल जी के बारे में जानकारी रखता हो तो जरुर बताये)

आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

करते है पुन: अभिनंदन तेरा हम ब्लागवाणी


सांसे थम सी गई थी अपनी जब न थी ब्लागवाणी
करते रहे इंतजार कब आयेगी फ़िर से अपनी रवानी

देखो लो वापिस आई फ़िर से अपनी वाणी
करते है पुन: अभिनंदन तेरा हम ब्लागवाणी

हम जैसे ब्लागरो की तू है एक मात्र वाणी
खुश है फ़िर से दीदार हुये तेरे ब्लागवाणी

भावो का आदान प्रदान होता तेरे दर पर ब्लागवाणी
हर तरफ़ रौनक लौट आई आने से तेरे ब्लागवाणी

पाकर फ़िर से तुम को, हो गये है हम ओत प्रोत
ब्लागरो के इस महासंग्राम की फ़िर जल उठी जोत

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

सोमवार, 28 सितंबर 2009

प्रश्न येसे पूछता है क्यो?


तू अपने मन के अंतर्मन में
छुपा कर बैठा ना जाने क्या ?

रहता चुप ना जाने किस भय से तू
हर मोड पर दिखता असहाय क्यो?

पीडा सहता ना जाने दर्द कैसा झेले तू
हर वेदना को पनपने देता है क्यो?

दु:ख का साया पल पल सताये
हर हार में खामोश दिखता है क्यो?

गम में बिलखता, रोता चुपचाप है तू
हर संताप में अकेले रहता है क्यो?

शून्य सा हो जाता है हर जबाब में तू
जिनका उतर नही, प्रश्न येसे पूछता है क्यो?

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

हम रूठना भूल गए :लेखक कमलेश चौहान कॉपी@2005


हर मौसम आया हर मौसम गया हम भूले ना आज तक कोई बात हम भूले ना तेरा पियार दिल ने माना तुम्हे ही दिलदार तेरा हमारे रूठने पे यह कहना भल्ला लगता है तेरा मिजाज़ चुलबला जब हमारा किसी से बात करना सुना करते थे तुमसे ही तुम्हारे दिल का डरना हम पूछते थे कियों करते हो हमारे प्रेम पे शक जवाब था तुम्हारा भरोसा है मुझ पर नहीं करता मेरे दिल नादाँ पे कोई शक लेकिन यु आपका हमारे आजाद पंछी दिल को कैद करना हमारा दिल समझ न सका आपका इस कदर दीवाना होना जब आई तुम्हारी बारी पराये लोगों से यु खुल कर बात करना, सोचते आप भी सीख जायोंगे प्रेम दोस्ती मे अंतर करना हम खुश होते तुम सीख रहे हो गैरो से दोस्ती करना हमारे दिल की कदर करोगे क्या होता है समाजिक होना यह क्या हुआ यह कै़से रुख बदला तुमने अपना गैरो की बातो मे हकीकत पाई तुमने हमारी वफ़ा भूल गए मौसम भी कुछ वक़त लेता है बदलने में सर्दी गर्मी घडी लेती है रुत बदलने में यह किस कदर रास्ता हमारा भूल गए इतनी जल्द कियों रंग बदल गया तुम्हारा नियत ने बदसूरत किया चेहरा तुम्हारा हम बैठे रहे दहलीज़ पर तेरी इंतजार मे बिखरा दिये राहो की बेदादगरी ने जो फूल बिखारे थे मेरे हाथो ने जब रूठ कर माँगा हमने अपना हक बरसा दिये तुमने अंगार भरे लफ्ज़ आंखे रोई पर ना सोयी रात भर तेरी ख़ुशी पे भटका था मेरा सफ़र वोह नज़र बरस जाती थी हमारी याद में अब ज़हर है कैसा तुम्हारी उस नज़र मे वोह तुम ना थे जो आंसू चुराए तन्हाई के मालूम ना था बरस गया है धुआ कब से तेरी बेरुखी से यह अशक निलाम हो गये मेरे अशकों से तेरी यादो के दिये बुझ गये तुझे क्या पता औ बेवफा अंग है बर्फ मेरे ना आयुंगी कभी तेरे दर पे बुलाने तुझे तेरी राहो से अब काफिले दूर हो गये कौन करे दुवा तेरे मिलने की हम रूठना भूल गयेWritt en by: Kamlesh Chauhan copy right 2005this composition is in form of story and poetry.Please nothing should be exploited or manipulated. allrights reserved .
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