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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

मुझमें एक जोत जला दे माँ

अक्षरावाणी साप्ताहिक पत्रिका के काव्य मंजरी पृष्ठ में प्रषित




मुझमें एक जोत जला दे माँ
 
हे वीणा धारिणी, करता तुझको प्रणाम
हे हंसवाहिनी, करता मैं तेरा ही स्मरण
हे माँ शारदे, ज्ञान का तू कर बीजारोपण
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
मेरे ज्ञान का, तू अब भंडार भर माँ
हो मुझमें संचार, तेरे प्रकाश का माँ
है अर्चना तुझसे, मुझे आशीष दो माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
शरणागत हूँ, तेरा प्रेम वर्षण चाहता हूँ
हूँ अज्ञानी मैं, विद्या वरदान चाहता हूँ
वीणा के तारो से, सुरों का ज्ञान चाहता हूँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
इर्ष्या और नफरत को, मुझसे दूर कर माँ
प्रेम और क्षमा बन, मुझमें  वास कर माँ
सत्य और मीठा बोलूँ, ऐसा वरदान दे माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १६/५/२०२१

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

सन्देश

 




~ सन्देश ~


कोई नहीं धरती पर जो ईश्वर से बड़ा है
मानव घमंड हर बार इसे ले कर उड़ा है
बार - बार यहाँ इंसान प्रकृति से लड़ा है
फिर भी अपनी करतूतों पर वह अड़ा है
प्रकृति ने आज हमें थप्पड़ फिर जड़ा है
तबाही का मंजर फिर दिखाई पड़ा है
रिस रहा जो वो भरा प्रदूषण का घड़ा है
धर्म आस्था सहित "प्रतिबिम्ब" कर्म बड़ा है
पर्यावरण सुरक्षा पर प्रश्न आज भी खड़ा है
सुन लो अभी भी प्रकृति का सन्देश कड़ा है

सोमवार, 25 जनवरी 2021

मेरा गणतंत्र, मेरा अधिकार

 


मनाएं गणतंत्र दिवस, संविधान का सम्मान कर
भारतीय संविधान का हम अपने जाने मूल मंत्र
स्वतंत्र विकास व् जीवनयापन का हमें अधिकार
संविधान के भाग ३ में हैं हमारे मौलिक अधिकार
पहले सात थे, अब हैं हमारे ६ मौलिक अधिकार
कर संशोध ४४वा हटा लिये संपति का अधिकार
बना दिया ३००-क के तहत तब कानूनी अधिकार
 
१२ से ३५ में चिन्हित है अपने मौलिक अधिकार
१४-१८ अनुच्छेद देता है समता का अधिकार
१९-२२ में मिलता हमें स्वतंत्रता का अधिकार  
२३-२४ में उदृत है शोषण के विरुद्ध अधिकार
२५-२८ में मिलता धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
२९-३० देते हमें संस्कृति व शिक्षा का अधिकार
३२ में मिलता है संविधानिक उपचार अधिकार
 
कर्तव्य के प्रति हमारा समर्पण का  एक मंत्र है
कर्तव्य ही अधिकार का होता सच्चा स्त्रोत है  
कर्तव्यनिष्ठ जीवन शैली को अपना बनाना है
संसाधनों संग देशहित का हमें रखना ध्यान है  
नैतिक कर्तव्य को हमें अपने व्यवहार में लाना है
स्वयं में व समाज में जागरूकता को लाना है  
अपने शाश्वत मूल्यों का हमें निर्धारण करना है
 
७२वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!!!
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल,  २५ जनवरी २०२१

रविवार, 3 जनवरी 2021

आज की सुबह


 



~आज की सुबह~

पूष माह में
झमाझम बारिश के
मधुर आलिंगन से
भीगती मेरी सुबह


कड़कड़ाती बिजली से
दहलता सा आसमां
ज़ोर से धड़कता
ये मेरा दिल

धरती से मिल
सुगंधित है करती
मन रज को
बारिश की बूंदे

हल्के से उभरते
नर्म अहसासों में
चाहत झंकृत होती
गरम साँसो में

गिन रहा हूँ
गिरती बूंदों को
ख्वाइशों में बढ़ती
तेरी चाहत को

सुबह या रात
सर्द हवा की बात
पुकारती तेरा नाम
बारिश की बूंदे

बरस रहे मेघ
रोमांचक तेरा स्पर्श
तेज होता संवेदन
गरम रक्त स्पंदन

आवाहन श्रवण सुभग
मिलन आस प्रतिबिम्बित
देख प्रवाह पुलकित
बारिश की बूंदे

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०३\०१\२०२१

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

क्षितिज व्योम पर



क्षितिज व्योम पर 


क्षितिज व्योम पर है रेखांकित
नवजीवन का बन जीवन अमृत 
प्रीति रीत का प्रवाह नवनीत
जीवन संगति अनुभूति अतुल

भावना प्रबल, शब्द प्रत्यंचित
दृष्टि आलौकिक, प्रयत निष्ठा
प्रयति आभूषण, वेग प्रहाण 
जीवन - धन, प्रहर्षित जीवन 

निज मन का स्वाद विमुख है
समर्पण प्रणय बोध सजग है
मोह मंत्र नहीं मुक्ति मार्ग है 
संयम व नियम का बंधन है

पर्यवरोध की बन सुरक्षा कवच
प्रगल्भता का तुम प्रणीत संदेश
प्रतीति प्रणय की बन कर श्वास  
गूँजती प्रावण सी मुग्ध ध्वनि

आमोद का न होता प्रतिपादन 
आत्मीयता का यह गूढ़ दर्शन
अन्तर्मन में होता बस प्रतिनाद  
खिलता जलज बन तेरा ‘प्रतिबिंब’

अवचेतन प्राण की चेतना हो 
मेरे अस्तित्व का समग्र दर्शन 
सींच रही मेरे मन की प्रकृति
अनंत कल्पना की बन साक्षी 

क्षितिज व्योम पर रेखांकित
हाँ ! तुम मेरा जीवन हो !!
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल ०१\०१\२१

शुभम

 



चलिये आरम्भ करते हैं,

नए साल में नया सफर 

शब्दों की इस यात्रा में,

अब मौन संग न होगा

कुछ मेरे मन का होगा,

कुछ तेरे मन का होगा

होगा गवाह अब वर्तमान,

सृजनता होगी अब पहचान 

शुभ होगा इसका आगाज,

बुलंद होगी अब हर आवाज़

गूंज उठेगा इसका हर शब्द,

सत्य का होगा अब शंखनाद

मेरा चिंतन, चिंतन मेरे मन का,

प्रतिबिम्बित होगा इस पटल पर

-----------------------------

शुभ हो! जय हो! विजय हो!

शुभम 

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

जा रे



सन दो हज़ार उन्नीस को 
भरे मन से विदा किया था
होनी अनहोनी के संग 
सुख - दुख के तमाम पलो को 
समेट कर विदाई दी थी 
३१ दिसंबर, १९ की सर्द रात में  
और
बहुत अरमानो से 
स्वागत किया था तेरा
क्या नहीं चाहा था तुझसे 
अपनी ही नहीं देश और 
समाज की खुशहाली चाही थी 
२०२० को अपना बनाने का 
श्रीगणेश कर भी दिया था 
सपनों की उड़ान को
बस पंख लगने ही वाले थे कि
‘कोविड १९’ ने सारे अरमानों पर
बुरी नज़र लगा दी

१०० सालों बाद विश्व में 
महामारी कोई ऐसी फैली 
मिलना जुलना बंद हुआ 
अर्थव्यवस्था रुक गई 
जीना सबका दूभर कर गई 
कितने बेरोजगार हुये 
व्यवसाय कितने तबाह हुये 
कितनी जानों को छीन गया 
लावारिस मौत अपनों की 
देख कितना दिल रोया होगा 
मौन श्रद्धांजलि हर ओर 
अजीब शांति थी बाहर 
अंदर हाहाकार था   
कहीं ॐ शांति का शोर था  
विदा हुये 
कितने अपने, कितने नेता, 
कितने अभिनेता, कितने सेवा कर्मी 
किसी को न तूने छोड़ा 
मनोबल तूने सबका तोड़ा 
अब तू जा 
२०२० तू जा रे 

इस बार मैं
स्वागत नहीं कर रहा 
अँग्रेजी नववर्ष का 
लेकिन तुझे २०२० 
अब मैं 
भागता हुआ देखना चाहता हूँ 
हम सब से कोसो दूर
तेरी यादों को 
‘डिलीट’ करना चाहता हूँ 
है मुश्किल अपनों को भूलना 
पर विश्व की खुशहाली हेतु 
तुझे सर पर पैर रखकर
भागते हुये देखना चाहता हूँ
जा रे, तू जल्दी जा रे

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/१२/२०२०    


 

 

 

    

 


शनिवार, 5 दिसंबर 2020

ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं ....

 


 


आंखो की नमी और आँखों की आग बता देती है मिजाज दिल का। आँखेँ दिल का दर्पण होती हैं और कभी ये आँखेँ बहुत बोलना चाहती हैं। आँखों का ख्याल आते ही उमराव जान फिल्म का गाना, इन आँखों की मस्ती के मस्ताने  रह-रह कर याद आ रहा। आज मन आँखों से मिलकर आँखों की भाषा से बात करना चाहता है।  

सुन लो गाँव वालों, शहर वालों, आँख व कान खोल कर कि आँखों से नित नए आयाम लिखने में हमारा कोई सानी नहीं। हम आँख लगाते नहीं, हम आँख मिलाने पर विश्वास करते हैं। कभी कोई आँखों में घर कर, बस जाता है तो कभी कोई आंखो से उतर जाता है। आँखेँ तरेरना हम नहीं जानते इस लिए कुछ की आंखो के तारे हैं हम।

हमारे आस पास कुछ तत्व आदतन दूसरे के घर पर आँख टिकाये रहते हैं। ऐसे प्राणी हमें फूटी आँख नहीं सुहाते। लोगों को इस जमाने की हकीकत को बता हमने लोगो की आँखों में पड़े पर्दे को हटाने की कोशिश बहुत की लेकिन नाकाम रहे। इस कारण आज भी कहीं हम आँख का काँटा बने हुये हैं।      

फिर भी आँखों में चर्बी चढ़े लोग कब हमारी अहमियत समझते हैं, यकीन है उनकी आँखों में खटकते जरूर होंगे हम। इस महफिल में भी आंखे मैली करने वाले बहुतेरे है।  हमारी हरकतों को आंखे फाड़कर देखने वाले और आँख लगाने वाले भी बहुत हैं। बहुत लोगो की आदत होती है लेकिन जैसे ही हम आँख में आँख डालते है उनकी, वे कन्नी काट जाते हैं। लोग जिंदगी में बहुत आते हैं उसमें कितने तो आँखों मे धूल झोंक कर चल देते है और कुछ आंखे फेर लेते है पर कुछ हैं जो आँखों ही आँखों में एक रिश्ता कायम कर लेते हैं।

इस भौतिकवाद के युग में आंखे चार होते ही हमसे आँख चुराने वालों की कमी भी नहीं। पर हम भी कम नहीं उनको जिस पल आँख भर कर देख लेते है तो वो पल बन जाता है उनका। आंखे भर आती है जब देखता हूँ कि कुछ लोग आंखे बिछाये हमारा इंतज़ार करते हैं। कम है, पर हैं जिन्हें देखकर आंखे खिल जाती है हमारी। दिल बाग-बाग होता है यह सोचकर कि कुछ की आंखो में घर बसाया है हमने। अभी भी हम कितनों का दिल लूट लेते है आखिर आंखो से काजल चुराने में महारत हासिल है हमें।

कातिल बन कर ये आँखें हमको मरने नहीं जीने का सबब दे जाती हैं। फिलहाल तो दिल आज उन आँखों की गुस्ताखियों को माफ करने के मूड में है जिनकी आँखों में हमने अजब सी अदाएं  देखी हैं। उन आँखों को दगाबाजी  सिखाने वालों का सजा देने का इरादा भी रखते है। आँखें काली, कत्थई हो या सुरीली, आँखें मस्त-मस्त हों या चैन लूटने वाली, सब देख हमारी आँखें हंस देती हैं। दिल की जुबां बनते देर नहीं लगती इन आँखों को फिर। इसमें कोई शक नहीं की कसूर आँखों का ही होता है जब प्रेम का श्रीगणेश होता है। अब जब आँख लड़ ही गये तो दिल बेचारा क्या करे? जीवन से भरी आँखों में आखिर डूब जाना और फिर इसमें गोताखोरी करना कोई जोखिम से कम नहीं। आँखों से प्रेम जाम पिलाये कोई तो मदहोश होना बनता है न। फिर लगता है कि इन आँखों के सिवाय दुनियाँ मे रखा क्या है?

सच बतायें उनकी आँखों में जहां बसता है हमारा। उनकी आँखों में सवाल भी होते हैं जबाब भी होते हैं।  प्रेम की हर भाषा जानते हैं उनकी आँखें और जब शब्द कभी आनाकानी करते हैं तो उनकी झुकी आँखें मन में उठ रही तरंगो की जुबां बन जाते हैं। आँखों में ही निमंत्रण की स्वीकृति का उत्तर पाकर आँखें बंद कर उस अहसास को जीने के लिए तन मन आतुर होता है। उन आँखों में उभरते अहसासों की कशिश में प्रतिबिम्ब यही कह पाता है उन्हें कि “ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं।“ शुभकामना इतनी कि उनकी आँखों में गम के आँसू न आयें कभी और मुझे जब भी याद करे तो खुशी संग प्रेम से छलछला उठें उनकी ये आँखें .....

~ प्रेम हाइकु ~

 


प्रेम पूजन
गंगा सा जो पावन
तुम मूरत
 
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प्रेम संदेश
हर्षित होता मन
गर्वित भाव
 
*********
 
प्रेम अर्पण
निस्वार्थ लेन देन
तुम दर्पण
 
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प्रेम स्वछ्न्द
महकती सुगंध
जीता सम्बंध
 
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प्रेम प्रतिज्ञा
जन्मों का अनुबंध
होती तपस्या
 
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प्रेम है यज्ञ
त्याग होती आहुति 
चाहत स्वाह
 
*********
 
प्रेम स्वालंबी
केवल समर्पण
मूल मंत्र
 
*********

 


बुधवार, 2 दिसंबर 2020

नमस्कार!

 


नमस्कार! 
हो गई फिर सुबह 
फेसबुक ट्वीटर वाहटसप 
पर उपस्थिति दर्ज अनिवार्य है
वरना लोग बड़ी जल्दी भूल जाते है
आपका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है  
सबसे अच्छा, प्यारा करीब लगने वाला
कब स्मृति से अन्तर्धान हो जाये 
और आप की खुशफहिमी
कब ओंधे मुँह गिर पड़े 
पता ही नहीं चलेगा 
  
चलो अब शुरू करते हैं 
लोगों को रिझाना 
अपना बनाना 
अरे भई !
अपना बनाएँगे तो ही 
भाव मिलेंगे 
वरना इस स्वार्थ की दुनियाँ में
हम किस भरोसे 
अपनी पोल पट्टी खोलेंगे 
उमड़ रहे भावो को  सुनाएँगे
अच्छा - बुरा सुनाकर ही तो 
लाइक (गर्व कराती) पा सकेंगे
खुशनसीब हुये तो 
टिप्पणियाँ भी स्वागत करेंगी   
तंज़ कसे या फिर दिखाये प्यार 
कुछ तो करते अपने सपने साकार 
गतिविधि की लाइव जानकरी 
बटोरो खूब, झूठा या सच्चा प्यार 
चलता रहे हम सबका ये व्यापार 
इसलिए "प्रतिबिम्ब" करता 
आप सबको बारंबार नमस्कार!!!!  

-प्रतिबिम्ब ०२/१२/२०

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